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शनिवार, 8 जून 2013

कविता- दामिनी- Harendrapal singh tikamgarh

कविता- दामिनी- हरेन्द्रपाल सिह टीकमगढ म. प्र.

मै दामिनी हू
और जीना चाहती हू 
तुम्हारे संकल्प मे मै और जीना चाहती हू
तुम्हारी बेटियो के साहसो के साथ मै
और जीना चाहती हू।
तुम्हारी श्रृद्धांजलि की शकित लेकर मै
तुम्हारे साथ जीना चाहती हू।
तुम दामिनी बनकर उठो लडो दरिन्दो से
मै गर्व के साथ जीना चाहती हू।
मै अकेली हू नही अब 
देश की बेटी बनी हू
मै दरिन्दो को मिटाकर 
और जीना चाहती हू।
मै सो गयी तो क्या 
ये देश तो जगकर खडा है
इस अहसास के साथ 
मै तुम्हारे साथ जीना चाहती हू
मै संधर्ष करती रही 
पर बच न पाइ
दामिनी बनकर बचाना चाहती हू।
मै और जीना चाहती हू।
तुम्हारे आगनो मे दाना चुगती सी चिरैया
तुम्हरी याद के पहलू मे आना चाहती हू।
मै दामिनी हू
मै और जीना चाहती हू।
मै और जीना चाहती हू।
                         हरेन्द्रपाल सिह टीकमगढ म.प्र.

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