व्यंग्य-‘सरकारी तर्क’’
एक्सक्यूज मी, यहाँ क्या हो रहा है। पत्रकार ने पूछा-बाबूजी बोले यहाँ पुराने पेड़ों को काटकर मैदान बनाया जा रहा है ताकि कल मंत्री जी यहाँ पर वृक्षारोपण कर सकंे। किंतु हरे भरे पेड़ों को काटना कहाँ की बुद्धिमत्ता है। तुम्हारा मतलब वृक्षारोपण करना बुद्धिमत्ता नहीं है। अरे भाई विकास को धरातल पर लाने के लिए पुराने को शहीद तो होना ही पड़ता है और फिर हमें रिकार्ड दर्शाना है कि कितनी भूमि पर वृक्षारोपण किया न कि कितनी भूमि पर पेड़ों को काटा गया। पुराने पेड़ लावारिस होते है अव्यवस्था ज्यादा फैलाते है। देते केवल फल है। नये पौधे लगाने पर उस पर नाम लिखा जाता है। उसके लिए खाद पानी,रक्षा आदि का बजट बनाया जाता है जो कि पास भी हो जाता है। अरे! भाई पुराने पेड़ ऐतिहासिक भी तो होते है उनसे आपकी यादें जुड़ी होती है वह प्रत्यक्ष तो केवल फल देते है किंत अप्रत्यक्ष रूप से हमें बहुत कुछ देते है। भाई क्या देते है और क्या लेते है, मुझे नहीं पता मुझे तो ऊपर से आदेश मिला ैहै जिसका पालन करवा रहा हँू।मंत्री जी जहाँ आप वृक्षारोपण करेंगे वहाँ तो पहले से ही वृक्ष लगे हैं और उन्हें काटा जा रहा है क्यों ? क्योेंकि बडे़ वृक्ष छोटे वृक्षों को पनपने नहीं देते इसीलिए वहाँ वृक्षारोपण किया जायेगा। वहाँ वृक्षारोपण क्यों नही किया जाता जहाँ वृक्ष है ही नहीं?,वहाँ वृक्ष हो भी नही सकते। समझे, पत्रकार के सारे तर्क कुतर्क की श्रेणी में आ गये।
वृक्षों को लगाने से लेकर उसके बड़े होने तक का समय सरकार का होता है। वृक्षों को पालना,पोसना उनकी देशभाल करना सब सरकारी नीतियों द्वारा ही होता है पेड़ बड़ा होने पर बेलगाम हो जाता है और उसे ना पालने की आवश्यकता होती है। और न ही पोषण की,ऊपर से उसकी रक्षा भी करनी पड़ती है कि कहीं। कोई काटकर न ले जाए। बजट भी यह कहता है अप्रत्यक्ष लाभ मिल रहा हो तो प्रयास करे प्रत्यक्ष लाभ मिल सके। छः माह बाद वृक्षारोपण स्थल पर ंिपंजरे में बढ़ रहे वृक्ष अपनी जि़न्दगी के आखिरी दिन गिन रहे थे और पिंजरे पर तख्ती में लिखे नामों से पूछ रहे थे मुझसे क्या भूल हुई जो ये सजा हमको मिली।
-विजय कुमार मेहरा,होशंगाबाद (म.प्र.)
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