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मंगलवार, 18 जून 2013

बुन्देली व्यंग्य .. तुमै कित्तौ सम्मान चाउने.. mahedra jain potdaar

        बुन्देली व्यंग्य-‘‘तुमैं कित्तौं सम्मान चाउने’’

            ‘सत्य’ कवि ने कहा है कि-दो खाय चार की भूख तो लगई आउत है का करे भईया,कलजुग जो आ गओ। ऐसई हमायें सबरें संगी-साथी पवरें,एक-दूजे को तांक-तांक के बेचैंन होत रत और सम्मान कैसे मिलै उकी जुगत में बने रत। चाये जैसो हो साम-दाम,दण्ड भेद कोनऊ नीति अपनाने पड़े,भैया लगई रनें,नई तो जा करके देखों,भैया जा तो तुम जानतई हो के अपन दोउ एकई थैला के चट्टे-बट्टे है सो देखो अपने बाल सोई सफेद हो गये पर कौनऊ तो पूँछत नईयाँ सो भैया ऐसो करौ कै एक कारीकिरम तुम रक्खलो और एक हम रख लेत है सौ तुम हमाऔ सम्मान कर दइयो और हम तुमाऔ कर दे हंै,कओ कैसी रईं। भैया जा तो खूब कई दोइअन को काम चल जै है,तो आगें फिर देखौ जै है।
            भैया देखौ तो हमाए कमरा की भीटें सबरी भर र्गइं सम्मान पत्रन सें और दो बक्सा ठुसे पडें हैं सम्मान पत्र शाल से तो दो अलमारी भरी पड़ी हंै,अब का करैं इनको जला सकत नईयाँ और न बंेच सकत,र्नइं तो कोऊ का कैहै सौ भैया मोय बड़ौ डर लगत है। पर का करें जो ससुरों मन है न! वो मानतई नईयाँ। देखा देखी हमें भी लगन लगत है कि चलो भैया मन तो मानत नइया सौ होई तो जानदो एक सम्मान। अखबार में फोटो छप जै है और हमाए मन खांे साता हो जे हे।
            भैया जब कबहु अकेले होत हैं सो जो मन है न बौ बाहर आ जात और कन लगत के काय भैया जौ का करो,इन सम्मान पत्रन को ढुरई तो लग गऔ ओईपे अब और चाउने सम्मान,का हुइयै तोरौ-अहंकारी हो गओ तें तो, माया की चापलूसी,मक्कारी देखौ तो कितेक बढ़ गई तोरी,देख अब तो गम खा जा और बंद कर दो जौ सब नाटक,नेताओं की चमचागिरी करबौ। मैं तो भौतई घबरा गओ,मैं तौ अब कोल खात हांे मोय अब नईं चाउने जौ सम्मान। ईको कोनऊ अंत नईया,अब तौबा करत हैं। जब जागो तबई सबेरा। त्राहीमाम्-त्राहीमाम्।
   
                                                                                          -डाॅ.एम.महेन्द्र जैन पोतदार ‘सत्य’,टीकमगढ
                                                                                                                      (नेचुरोपेथी)

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