योगदान देने वाला व्यक्ति

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

ग़़ज़ल-ख्वाब-भारत विजय बगेरिया,टीकमगढ़,(म.प्र.)

भारत विजय बगेरिया,टीकमगढ़,(म.प्र.)   
ग़़ज़ल-''ख्वाब
ख्वाबों में कभी तुम मेरे आया न करो,
रातों में कभी तुम मुझे जगाया न करो।
कितने ही तूफ़ान आएँंगे,जि़न्दगी में अभी,
जीवन से जल्द तुम कभी घबराया न करो।
फूलों के चमन में भी न खो जाइए इतना,
काँटों के साथ दिल को यूँ बहलाया न करो।
कभी खेला भी करो तुम मझधारों से,
सिफऱ् किनारों को भी गले लगाया न करो।
अश्कों के समुंदर में डूबी न रहा करो,
खुशियों भरी जि़न्दगी लजाया न करो।।

ग़़ज़ल-''आखिर
आखि़र शाख से पत्ते गिरते क्यों हैं।
मेरे जाने के बाद भी पलटकर वे देखते क्यों हैं।
बहुत ग़म झेले हमने उनके जाने के बाद,
रात को ख्वाबों में आखिर आते क्यों हैं।
कौन कहता है उनको हमसे मुहब्बत नहीं,
दूसरों से हमारा हाल आखि़ार पूँछते क्यों हैं।
क़सम दे गये हो हमसे मिलेंगे कभी नहीं,
डाकिया से ख़्ात वो आखि़ार लेते क्यों है।
दूसरों से सुनते हैं,जब वह हाले बयाँं,
आँखों से ग़मों के आसूँ टपकाते क्यों हैं।।
 -भारत विजय बगेरिया,टीकमगढ़,(म.प्र.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें