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सोमवार, 30 सितंबर 2013

शोभाराम दांगी 'इन्दु'-'देश भक्ति गीत

                    गीत-''देश भक्तिशोभाराम दांगी 'इन्दु' गीत
हम अपने वतन की आन पर मर मिटने को तैयार हों।
जिसका नमक तुम खा रहे हो उस देश के ही काम हो।।
पैगाम मिला आजादी का तुमको तनक सोचते क्यों नहीं।
जिसने लहू बहाया अपना उनकी सीख लेते नहीं।।
गौरव बढ़ा है देश का विधि ने देश सजाया है।
पर भीतर ही भीतर कालिख क्यों ये लाया है।।
घोटालों पर घोटाले करवै सुनकर मन ये झुझलाए।
बड़ा करेगा घोटाला तो छोटा क्यों अब सरमाये।।
गाँव शहर के वर्चस्व लोगों के दिन पर दिन हैं उल्टे काम।
उनके ही अनुरूप चलेंगे लघुभ्राता का भी होगा काम।।
इस प्रकार की मंशा से ही छवि देश की बिगड़ रही।
मजदूर वर्ग उर कम जमीन वालों की नाक रगड़ रही।।
नेता और कर्मचारी सब मुँह देखी में करते काम।
लम्बी-चौड़ी बखरी पक्की ट्रेक्टर घर में बाढ़े दाम।।
फिर भी गरीबी रेखा धारक पिसिया ले रय सस्ते दाम।
कल्पधारा कुंआ खोद लय राजा बनके एठै दाम।।
इनिदरा आवासीय योजना के भी ले रय सबरे दाम।
असल गाँव का हमें पता है को गरीब है को धनवान।।
छानबीन 'दाँगी ने करके कविता द्वारा दव बखान।।
 -शोभाराम दांगी 'इन्दु
  नदनवारा,टीकमगढ़(म.प्र.)

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