कविता- उत्सव देखूंगा मैं!
पाँच ज्ञानेनिद्रयों में,
पाँच कर्मेनिद्रयों मैं।
अपनी मुकित का,
उत्सव देखूँगा मैं।
मानव जीवन मैं।
प्रकट शकितयों मैंं।
व्यायाम शाला में,
उत्सव देखूँगा मैं।।
आकांक्षा के मार्ग में
दिव्यांश हो जाता ।
सर्वश्रेष्ठ मार्ग का,
उत्सव देखूँगा मैं।।
जो जीवन जीने की
शकित और सामथ्र्य
अन्यथा निराशा से,
उत्सव देखूँगा मैं।
हिन्दू-मुसिलम मैं
सोना ज्योति माटी का
उत्सव देखूँगा मैं।।
देवेन्द्र कुमार अहिरवार'भारत
दिगौड़ा,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पाँच ज्ञानेनिद्रयों में,
पाँच कर्मेनिद्रयों मैं।
अपनी मुकित का,
उत्सव देखूँगा मैं।
मानव जीवन मैं।
प्रकट शकितयों मैंं।
व्यायाम शाला में,
उत्सव देखूँगा मैं।।
आकांक्षा के मार्ग में
दिव्यांश हो जाता ।
सर्वश्रेष्ठ मार्ग का,
उत्सव देखूँगा मैं।।
जो जीवन जीने की
शकित और सामथ्र्य
अन्यथा निराशा से,
उत्सव देखूँगा मैं।
हिन्दू-मुसिलम मैं
सोना ज्योति माटी का
उत्सव देखूँगा मैं।।
देवेन्द्र कुमार अहिरवार'भारत
दिगौड़ा,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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