योगदान देने वाला व्यक्ति

मंगलवार, 24 जून 2014

Akanksha-2014(9)



टीकमगढ़//स्व.श्री पन्नालाल जी नामदेव स्मृति सम्मान एवं साहित्यिक संस्था म.प्र.लेखक जिला इकाई टीकमगढ़ का ‘वार्षिक उत्सव’ का संयुक्त आयोजन रविवार दिनांक 29 जून 2014 को समय 2 बजे दोपहर से नगर भवन पैलेस टीकमगढ़ के सभा कक्ष में होकर सम्पन्न हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में अIकाशवाणी छतरपुर के निदेशक श्री राजेश कुमार गौतम जी रहे व विशिष्ट अतिथि के रूप में इंदौर के कवि श्री नवीन खंड़ेलवाल‘निर्मल’ श्री दिनेश रजक जी कार्यक्रम अधिकारी आकाशवाणी छतरपुर रहे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता’ छतरपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्य मनीषी पं.श्री सुरेन्द शर्मा ‘शिरीष’। इस अवसर पर राजीव नामदेव 'राना लिधौरी द्वारा संपादित म.प्र.लेखक जिला इकाई टीकमगढ़ की वार्षिक पत्रिका आकांक्षा’ के 9वें अंक-2014 का विमोचन किया गया I साथ में है  पं.​हरिविष्णु अवस्थी एवं हाजी ज़फ़रउल्ला खां 'जफर'

Akanksha 2014
                                            
     मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ (म.प्र.)
    कार्यालय- नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
      कुँवरपुरा रोड़,टीकमगढ़      
    मोबाइल-9893520965
    मासिक साहित्यिक/काव्य गोष्ठियों का वार्षिक कार्यक्रम 
             (माह-जनवरी 2014-दिसम्बर 2014 तक)
महानुभाव,     म.प्र.लेखक संघ की बैठक में लिए गए निर्णयानुसार म.प्र.लेखक संघ टीकमगढ़ की मासिक साहित्यिक/काव्य संगोष्ठियाँ एवं बैठकें निम्नानुसार निर्धारित की गई है। इनमें आप इष्ट मित्रों सहित सादर आमंत्रित हैं। इन संगोष्ठियों/बैेठकों की सूचना अलग से नहीं दी जायेगी। कृपया समय की पाबंदी का विशेष ध्यान रखें।
नोट- 1- इनके अतिरिक्त आयोजित संगोष्ठी/विशेष बैठकों की सूचना अलग से दी जाएगी।
    2- स्थान,समय या अन्य कोई परिवर्तन होने पर अलग से सूचना दी जायेगी।
    3- कृपया इस कार्यक्रम को सदा दृष्टि पड़ने वाले स्थान पर चस्पा कीजिए।

      क्र.      दिनांक         दिन                दिवस                        
(180) 26 जनवरी 2014- रविवार  देश प्रेम व वीर रस गोष्ठी
              (स्थान-पी.डी.तिवारी निवास) 2 बजे दोपहर
    (181)-23 फरवरी 2014-रविवार

             ग़ज़ल गोष्ठी - 2 बजे दोपहर
    (182)-30 मार्च- 2014-रविवार

-नारी शक्ति पर केन्द्रित गोष्ठी -7:00 बजे सायंकाल
    (183)-27 अप्रैल 2014-रविवार-

 हास्य व्यग्ंय गद्य व पद्य गोष्ठी-7:00 बजे सायंकाल
    (184)-25 मई-2014-रविवार

नई कविता गोष्ठी - 7.00 बजे सायंकाल
    (185)-29 जून-2014-रविवार

‘बुन्देली’ गद्य व पद्य गोष्ठी-2 बजे दोपहर
 (186)-27 जुलाई 2014-रविवार

-प्रेमचन्द्र पर विचार व काव्य गोष्ठी-2 बजे दोपहर
    (187)-31 अगस्त 2014-रविवार

-गीत गोष्ठी -2 बजे दोपहर
 (188)-28 सितम्बर 2014-रविवार

राज भाषा ‘हिन्दी’ पर विचार व काव्य गोष्ठी
 -2 बजे दोपहर
 (189-26 अक्टूवर 2014-रविवार-

लघुकथा व कहानी गोष्ठी -2 बजे दोपहर
  (190)-30 नबम्बर 2014-रविवार-

बाल साहित्य गोष्ठी -2 बजे दोपहर
   (191)-28 दिसम्बर 2014-रविवार-

कुण्डलिया व दोहा, छन्द गोष्ठी-2 बजे दोपहर
    आयोजन स्थान- उपरोक्त सभी गोष्ठियाँ जिला पुस्तकालय,
                       नगर भवन के ऊपर,टीकमगढ़ में आयोजित होगी।

             सचिव                                         अध्यक्ष
        रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’       राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’  


भोपाल प्रादेशिक सम्मानों से सम्मानित साहित्यकार  
सम्मान  - सन् -  राशि-     क्षेत्र - सम्मानित साहित्यकार
1-काशीबाई मेहता सम्मान-(2004)-1100 (कविता)

 डाॅ. छाया श्रीवास्तव
2-देवकी नंदन माहेश्वरी सम्मान(2005)-1100 (कविता)

 राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी
 3-कस्तूरी देवी लोकभाषा सम्मान (2011)-1100 (बुंदेली)
 डाॅ.कैलाश बिहारी द्विवेदी
4-सर्वश्रेष्ठ इकाई सम्मान-( 2006)  

           इकाई जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
5-देवकी नंदन माहेश्वरी सम्मान-(2013)-1100 (बाल साहित्य)

       व्ही.व्ही. बगेरिया
म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ इकाई द्वारा सम्मानित साहित्यकार    

सम्मान    सन्     क्षेत्र       सम्मानित साहित्यकार
1-आंचलिक सम्मान         2004    (ग़ज़ल)

      हाजी ज़फ़रउल्ला खां ‘ज़फ़र’,टीकमगढ़ 
   2-आंचलिक सम्मान         2004    (व्यंग्य)
     श्री रामगोपाल रैकवार कँवल’,टीकमगढ़
3-आंचलिक सम्मान         2004    (कविता)  

    डाॅ. डी.पी.खरे ‘प्रसाद’,टीकमगढ
4-स्व.पन्नालाल नामदेव सम्मान - 2004 (बुंदेली)

      श्री बटुक चतुर्वेदी,(भोपाल)
5-स्व.प्रेमनारायण रूसिया सम्मान - 2004 (गीत)

      श्री हरेन्द्र पाल सिंह/उषा सिंह,टीकमगढ़
6-गंगा साहित्य सम्मान -2004    (कविता) 

 श्री देवकी नंदन मिश्र ‘नंदन’टीकमगढ
7-डाॅ.ज़फ़रयार सिद्धीकी सम्मान- 2004 (ग़ज़ल)

      श्री उमाशंकर मिश्र ‘तन्हा’,टीकमगढ
8-ईसुरी स्मृति सम्मान -2009 (गद्य,बुंदेली)

 डाॅ.बहादुर सिंह परमार,छतरपुर
9-साहित्य श्री सम्मान - 2009(गद्य,बुंदेली)

 डाॅ.कैलाश बिहारी द्विवेदी,टीकमगढ
10-साहित्य गौरव सम्मान-2012 (कविता)

       स्व.श्री अशोक सक्सेना अनुज (भोपाल)
11-साहित्य सौरव सम्मान - 2012 

   (नई कविता) श्री विजय कुमार मेहरा,होशंगाबाद
12-साहित्य श्री सम्मान-2012(कविता) 

           श्री परमेश्वरीदास तिवारी,टीकमगढ़
13-समाज गौरव सम्मान  2012 (सामाजिक क्षेत्र)

 एम.महेन्द्र पोतदार,टीकमगढ
14-समाज शिरोमणि सम्मान     2012 

   (सामाजिक क्षेत्र) श्री बालचन्द्र मोदी,टीकमगढ
15-समाज रत्न सम्मान         2012    

(सामाजिक क्षेत्र) श्री मनोज मडवैया,टीकमगढ
16-मेधावी छात्रा सम्मान         2013  

  (शिक्षा के क्षेत्र) कु. रितु चतुर्वेदी, टीकमगढ़
17-मेधावी छात्र सम्मान         2013  

  (शिक्षा के क्षेत्र) कु. सौरभ चतुर्वेदी,टीकमगढ
18-साहित्य श्री सम्मान         2013    (कविता)     

श्री बाबूलाल जैन ‘सलिल’, टीकमगढ
19-साहित्य श्री सम्मान         2013    (गीत)  

    श्री शोभाराम दांगी ‘इन्दु’,नदनवारा
20-साहित्य श्री सम्मान         2013    (ग़ज़ल)     

  हाजी ज़फ़रउल्ला खां ‘ज़फ़र’,टीकमगढ़
21-साहित्य श्री सम्मान         2013    (संचालन)

  श्री उमाशंकर मिश्र ‘तन्हा’,टीकमगढ़
22-साहित्य श्री सम्मान         2013  

  (सर्वााधिक 169 गोष्ठियों के संयोजन)-राना लिधौरी
23-गीत शिरोमणि सम्मान-2014 (गीत एवं संगीत)

  श्री मनमोहन पाण्डे, बिजावर
24-कंठ कोकिल सम्मान-2014  (गीत)   

   श्री वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
25-बुन्देली गौरव सम्मान- 2014 ((बुंदेली)

       सु.श्री सीमा श्रीवास्तव ‘उर्मिल’,टीकमगढ़
26-बुन्देली गौरव सम्मान- 2014 (बुंदेली)

       श्री दीनदयाल तिवारी ‘बेताल’,टीकमगढ़
        

 म.प्र. लेखक संघ,जिला इकाई,टीकमगढ़
अध्यक्ष-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 

   (मोबा.-9893520965)
सचिव- रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’  

    (मोबा-8085153778)
कार्यालय पता-नई चर्च के पास,शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001               

प्रकाशक
म.प्र.लेखक संघ, टीकमगढ़ (म.प्र.)
              
प्रकाशन:- 2014

              
सहयोग राशि मात्र- 60.00 रु.

          
शब्द टंकण-    आकांक्षा  कम्प्यूटर
            प्रो.राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
             शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
 मोबाइल-          9893520965

शब्द संयोजन     -    सुरेश जांगिड़ उदय
              अक्षरधाम प्रकाशन कैथल(हरियाणा) द्वारा मुद्रित
चित्रांकन    - एल.एल.वर्मा (रिटा.पी.टी.आई),
नोट:-यह पत्रिका अव्यावसायिक है एवं इसके सभी पद मानद एवं अवैतनिक है। इस पत्रिका में प्रकाशित सभी रचनाओं की मौलिकता के  जिम्मेदार स्वयं रचनाकार हंै, संपादक से इसकी सहमति होना अनिवार्य नहीं। रचनाओं से संबधित किसी भी प्रकार का वाद-विवाद मान्य नहीं होगा। फिर भी यदि कोई विवाद होता है तो उसका न्याय क्षेत्र टीकमगढ़ (म.प्र.) होगा।

 आकांक्षा (पत्रिका) अंक-9
Akanksha (Volume -9)

www.akankshatkg.blogspot.com         


संपादक की कलम से ........
     ‘आकांक्षा’ पत्रिका का यह नौवाँ अंक हम आप तक पहुँचा रहे हैं।  इस बार हम वरिष्ठ लेखक श्री आर.एस.शर्मा पर विशिष्ट परिशिष्ट 12 पेजों में दे रहे है। स्थानाभाव के कारण गद्य आलेख बहुत ही संक्षिप्त में दिए जा रहे हैं।
    ‘उत्तराखंड में बहुत भीषण तबाही हुई हजारों लोग मारे गए तथा लाखों लोग बेघर हो गए। हमारी संवेदनाएँ उनके साथ हैं। हम सभी साहित्यकार उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं। ‘आकांक्षा’ पत्रिका परिवार व म.प्र. लेखक संघ के साहित्यकारों ने भी स्वेच्छा से यथाशक्ति दान दिया जिसे हमने एकत्रित करके मुख्यमंत्री राहत कोष (उत्तराखण्ड बाढ़ आपदा कोष)   में जमा कर दिया था। हम उन सभी दानदाताओं के हृदय से बेहद आभारी हैं कि जिन्हांेने हमारा अनुरोध स्वीकार करते हुए खुल मन से दान दिया।
    मित्रों, आपको यह जानकर बेहद खुशी होगी कि हमने अपने मित्र श्री विजय कुमार मेहरा जी की मदद से ‘आकांक्षा’ पत्रिका का अंक -8 सन’-2013 को इंटरनेट के ब्लाग पर डाला था। जिसमें भारत के साथ-साथ विेदशांे में भी बहुत सराहा गया। अब तक ‘आकांक्षा’ को कुल 1142 पाठक पढ़ चुके हंै जिसमें भारत के 723, अमेरिका के 143,रूस के 117,मलेशिया के 12,जर्मनी के 12,यूक्रेन के 9, ब्राजील के 5,,इंडोनेशिया के 3,कनाड़ा के 2,स्पेन के 2,द.कोरिया के 1, आदि देशों के पाठक शामिल है जिनकी संख्या दिनों- दिन बढ़ती जा रही है। आप भी ‘आकांक्षा’ पत्रिका को गूगल पर www.akankshatkg.blogspot.com टाइप करके सर्च करके पढ़ सकते हैं।
    हम विशेष रूप से मुकेश चतुर्वेदी‘समीर’ (सागऱ) ,श्री भारत विजय बगेरिया (टीकमगढ़), श्री देवेन्द्र कुमार मिश्रा (छिन्दवाड़ा),  श्री आर.एस.शर्मा, (टीकमगढ़), श्री शांति कुमार जैन (टीकमगढ़) एवं एम.जैन पोतदार (टीकमगढ़) के बहुत-बहुत आभारी हैं कि इन्हांेने ‘आकांक्षा’ के अंक-9  हेतु अपना विशेष सहयोग प्रदान किया तथा हम उन सभी साहित्यकारों के भी आभारी हैं जिन्होंने ‘आकांक्षा’ पत्रिका के लिए अपना प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमें सहयोग प्रदान किया।
    हम आशा करते है कि भविष्य में आप सभी का इसी प्रकार सहयोग एवं स्नेह मिलता रहेगा। पत्रिका में जो भी त्रुटियाँ जाने अनजाने में रह गयी हांे, उनके लिए हम आपसे क्षमा माँगते हैं। यह पत्रिका आपको कैसी लगी आपके विचार,सुझावों एवं समीक्षाओं का हमें बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
आपका........
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

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आपके पत्र
आपकी पत्रिका ‘आकांक्षा’ अंक-8 मिली। आपको धन्यवाद। साहित्य की उन्नति के लिए व साहित्य की वृद्धि के  लिए आपका यत्न सराहनीय व वंदनीय है। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

                           -के.के कोच्ची कोशी, तिरूवनन्तपुरम (केरल)
 आपके विद्वतापूर्ण संपादन में प्रकाशित ‘आकांक्षा’ पत्रिका के बारे में ‘जानकारी मिली है। हम आपकी पत्रिका के सदस्य बनना चाहते है। कृपया इसका सदस्यता शुल्क बताने का कष्ट करें।   

                      -डाॅ.धनपत सिंह शिवरायण,
                            डालावास,भिवानी (हरियाणा)
 आपके द्वारा प्रकाशित ‘आकांक्षा’ पत्रिका प्राप्त हुई,आाभार। पत्रिका अच्छी बन पड़ी है। आप बुन्देलखण्ड का नाम रोशन कर रहे है। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकारे।
                                -देवेन्द्र कुमार मिश्रा,
                                     छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
‘आकांक्षा’-8 प्राप्त हुई। आपके द्वारा सम्पादन में निरन्तर वृद्धि हो रही है तथा पत्रिका में निखार पैदा हो रहा है और आकर्षण भी बढ़ रहा है।मुखपृष्ठ और उस पर अंकित चित्र बड़ा ही दिलकश है जो पत्रिका को पृष्ठ-दर- पृष्ठ खोलने के लिए स्वतः मजबूर करता है। अंदर भी पर्याप्त सामग्री है। साहित्य की अधिकांश विधाओं पर रचनाएँ है जो स्तरीय भी है, और पठनीय भी। कहना होगा कि आपकी पत्रिका हिन्दी उर्दू और बुन्देली भाषाओं की संगम है एक उत्कृष्ट पत्रिका केसम्पादन के लिए मुबारकबाद। शुक्रिया।
                        -महबूब अहमद फारूकी‘महबूब’
                        पूर्व प्राचार्य,बिजावर,छतरपुर (म.प्र.)
‘आकांक्षा’-8 आद्योपांत विधिवत अवलोकन किया तो यह अनुभव किया कि आपकी साहित्यिक सेवा अतुलनीय एवं प्रशंसनीय है। साथ ही साथ पत्रिका भी अपना उच्च स्थान रखती है साहित्य समाज आपके इस प्रयास को ससम्मान एवं आदर नमन करता है। आपने पत्रिका में अपने अंचल में सुदूर क्षेत्रों से तमाम सम्मानित साहित्यकारों को समेट लिया है यह बात हम सभी के बडे़ गर्व एवं हर्ष की है। आपका संपादकीय भी मुझे प्रभावित करता है साथ ही साथ बुंदेली,गीत,ग़ज़ल आलेख लघुकथाएँं,व्यंग्य,कविता व हाइकु, आदि बहुत ही अच्छे व प्रेरणदायक लगते है। मैं सदैव ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप निरंतर साहित्यिक क्षेत्र में अग्रसर रहें, आपकी लेखनी कभी वाधित न हों । मेरी आपको ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ। 

               -सुधीर खरे ‘कमल’ हिन्दी प्रवक्ता (फारेन रिर्टन),बांदा(उ.प्र.)
प्रिय बंधु ‘आकांक्षा’ पत्रिका की जानकारी ‘प्रचारक’ पत्रिका (वाराणसी) से हुई। 

कृपया नमूना प्रति भेजने का कष्ट करें।       
 -डाॅ. संत कुमार टण्डन ‘रसिक’  कानपुर,(उ.प्र.)
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आपके पत्र
आपका पता समाज कल्याण’ दिल्ली की पत्रिका से प्राप्त हुआ। हो सके तो ‘आकांक्षा’ पत्रिका का एक अंक भेजे, ताकि हम पत्रिका के अनुरूप रचना भेज सकें।
                            -डाॅ.लक्ष्मी नारायण मित्तल
                        सेवा निवृत्त प्राचार्य,मुरैना (म.प्र.)
‘आकांक्षा’ पत्रिका के बारे में ‘प्राची’ पत्रिका (जबलपर) से ज्ञात हुआ। मैं आपकी पत्रिका का नियमित पाठक बनना चाहता हँ। कृपया शुल्क कितना है लिखें।
                                    -बंशीलाल अग्रवाल
                                  सूरत (गुजरात)
आपके द्वारा ‘आकांक्षा’ पत्रिका का प्रकाशन किया  जा रहा है। इस संबध में आप हमारी हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ सहर्ष स्वीकारंे। यदि आपको कोई असुविधा न हो तो कृपया एक अंक अवलोकनार्थ प्रेषित करने का कष्ट कीजिए, हम आपके बेहद आभारी रहेगे।
                                -पं.बी.एन.मोदगिल
                                 रोहतक (हरियाणा)
आपकी रचनाएँ लगभग दो दशक से पढ़ने को मिल रही है आपके द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘आकांक्षा’ की चर्चा भी सर्वत्र सुनी गयी है। उसे देखने,पढ़ने व जुड़ने की इच्छा को अब रोक पाना कठिन हो रहा है आशा है कि एक प्रति प्रेषित कर इच्छा पूर्ति का अवसर प्रदान करेंगे।                            -कृष्णदेव चतुर्वेदी
                                   भोपाल(म.प्र.)
‘प्रेरणा’ पत्रिका (भोपाल) में आपके संपादन में निकलने वाली पत्रिका  ‘आकांक्षा’  के बारे में पढ़ा। कृपया पत्रिका की जानकारी के साथ नमूना प्रति भेजने का कष्ट करें।
                                -बासुदेव रंगवाला
                              त्रिपुर (तामिलनाड)
पत्रिका ‘आकांक्षा’  के बारे में पढ़ा। कृपया पत्रिका की जानकारी के साथ नमूना प्रति अवलोकनार्थ प्रेषित कर अनुग्रहित करें। आपकी महती कृपा होंगी।
                            -डाॅ. प्रो. आ.एस.ढ़ोकिया
                                 हिसार (हरियाणा)
आपकी रचनाएँ हम विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व काव्य संकलनों में पढ़ते रहते है। आपके बेहतरीन लेखन के लिए मेरा नमन स्वीकारिएगा। पत्रिका ‘आकांक्षा’  के बारे में पढ़ा। कृपया एक प्रति अवलोकनार्थ प्रेषित करने का कष्ट कीजिएं। हम आपके आभारी रहंेगे।
                            -रामेश्वर प्रसाद गुप्त ‘इंदु’
                              बड़ागाँव, झाँसी (उ.प्र.)
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‘‘हिन्दी प्र्रचारक पत्रिका’मा.पत्रिका (वाराणसी) अंक-जुलाई-2013
(प्र.संपादक-विजय प्रकाश बेरी) में प्रकाशित समीक्षा/प्रतिक्रिया के कुछ प्रमुख अंश-
 टीकमगढ़ जिले से प्रकाशित एकमात्र साहित्यिक पत्रिका ‘आकांक्षा’ पत्रिका अंक -8 प्रकाश में आया है। जो स्व.श्री सी.एल. जैन ‘सरल हृदय’ के परिशिष्ट से सुसम्पन्न है। स्व. जैन जी का जन्म सन् 1929 में टीकमगढ़ में हुआ था जो इंदौर में अध्यापन कार्य करते थे। उन्होंने कविता गीत एवं निबंध लेखन में बिशेष दक्षता प्राप्त की थी।
    इस अंक में हिन्दी एवं बुन्देली दोनों भाषाओं में रचनाएँ प्रकाशित की गयी है पत्रिका के यशस्वी सम्पादक श्री राजीव नामदेव‘ राना लिधौरी है जो स्वयं सशक्त रचनाकार है। पत्रिका पठनीय व मननीय हैं।   
            -संपादक-विजय प्रकाश बेरी,वाराणसी,(उ.प्र.)
‘प्रेरणा’ पत्रिका (भोपाल) के सौजन्य से आपकी वाली पत्रिका ‘आकांक्षा’  का परिचय मिला। कृपया पत्रिका एक नमूना प्रति भेजने का कष्ट करें।
                                -तेजराम शर्मा
                            शिमला (हिमाचल प्रदेश)

दोहे- स्वागत नव वर्ष का
स्वागत है नव वर्ष का,जन-मन में हो हर्ष।
सुखी रहें धन धान्य से,सबका हो उत्कर्ष।।
सबका हो उत्कर्ष,दुक्ख ना कोई पावे।
हो हाथों को काम,दीन न कोई दिखावे।।
किया विगत को विदा,निहारो खड़ा है आगत।
आओ हिलमिल करैं,सभी जन उसका स्वागत।।
- हरिविष्णु अवस्थी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
        पेज-8
          पंजीयन क्रमांक 1995 दिनांक 08-12-1970
     म.प्र.लेखक संघ,इकाई टीकमगढ़(म.प्र.)
कार्यालयः- 22/547 नई चर्च के पीछे,शिवनगर काॅलोनी,
टीकमगढ़ (म.प्र.) 472001 मोबा.-9893520965
संरक्षक सदस्य
सर्वश्री डाॅ. कैलाश बिहारी द्विवेदी, पं.हरिविष्णु अवस्थी, आर.एस.शर्मा, हाज़ी ज़फ़रउल्ला खां ‘ज़फ़र’, एम.महेन्द्र जैन पोतदार,पं.हरीश अवस्थी,
अध्यक्ष-      श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
सचिव-        श्री रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’
उपाध्यक्ष-    श्री अजीत श्रीवास्तव,  श्री उमाशंकर मिश्र‘तन्हा’
कोषाध्यक्ष-   श्री भारत विजय बगेरिया
प्रवक्ता-        श्री हरेन्द्र पाल सिंह
प्रचार सचिव-  श्री वीरेन्द्र चंसौरिया
आजीवन सदस्य- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, रामगोपाल रैकवार ‘कँवल’
    डाॅ.रुखसाना सिद्दीकी, भारत विजय बगेरिया,एम.महेन्द्र जैन पोतदार,
               सम्मानित सदस्य
सर्वश्री हाज़ी अनवर,अवध बिहारी श्रीवास्तव, कु.सीमा श्रीवास्तव, सियाराम अहिरवार,  शोभाराम दांगी ‘इन्दु’ (नदनवारा),महेश खरे ‘गुरू’,लालजी सहाय श्रीवास्तव ‘लाल’,
गीतिका वेदिका, विजय कुमार मेहरा, परमेश्वरी दास तिवारी, चाँद मोहम्मद‘आखि़र’, शांति कुमार जैन,संजीव खरे, संजय खरे,पूरन चन्द्र गुप्ता,,गनी अहमद गनी (अनंतपुरा),देवेन्द्र कुमार अहिरवार (दिगौड़ा),दीनदयाल तिवारी,गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’ (लखौरा),अमिताभ गोस्वामी,राजेन्द्र बिदुआ ‘राजू’
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 बुन्देली-भक्ति गीत
प्रभू के दौरें सें हात दोउ जोरे सें खाली नैजै
फरियाद,किसी की खाली नै जै।
श्रद्धा औ विस्वास हो मन में दोनों हथियार।
मीरा ने विस्वास किया था श्रद्धा पैनीधार।
ये है कला,करले भला,बालपन छोड़े सें,
सच्ची लगन लगाई कृष्ण से परिवार कुटुम
भटकावैं कोउ मारे,कोऊ पींटे निसदिन खावै जहर
मिलावै कइ न करे,वो न डरे कोऊ के रोकें से
मन के भरोसें सें भूल न प्रभु की याद
किसी की खाली।
जो-जो ऐसी लगन लगो वो ही प्रभु को पायें,
खाली होत द्वार पर पहुँचे ‘दांगी’ अर्जी लगायें।
दुखड़ा सुनाये संे, हीन बन जाये सें मन्नत करें,
प्रभु पास सभी की.....।

बुन्देली कविता-गर्रोटी

कलुवा कौ नन्ना कैरव तौ दौरें कौड़ौ वारौ,
गर्रोटी चढ़ आई ठंड़ खों तन सिकुड़ गओ सारौ।
पाॅलीथन खाँ देखों हुइयै आग पकड़तन सिकुडत,
ऐइ घाँईं जौ मोरौ पिंजरा हाड मांस सब ठिठुरत।
ठंड़ी आग लगें जा जीखा सेबौ बस की नइयाँ
गद्दा और रजाई की बात न्यारी कथरी छोड़त नइयाँ।
पिड़गई ठंड कौनन-कौनन मिलौ न कितऊ उवारौ।
चढ़ी जुवानी इंड़ सास खां कैसे उतरै जुआनी,
चाय जित्ते पैरों उन्ना मड़वा सी कपवै बानी।
पाँच रुपइया प्रति किलो सें मिलें लकइयाँ,
कैसे रमुआ कौड़ौ वारें जामें लगें लुगइयाँ।
अब का हुइयै कैसें भइया कैसे होय गुजारौ।
बैठी दौंरें अबै डुकइयाँ मूड धरें करमन में,
मैंगाई की ई चपेट में मिलें न कितऊँ सहारौ।।
      -शोभाराम दांगी ‘इन्दु’,
    नदनवारा,टीकमगढ़ (म.प्र.)

    11
    

कविता-कुआँ
मेरे गाँव में कुआँ एक था मीठे जल का,
जिस पर पनिहारिन की भीड़ लगा करती थी।
उसके जल की बात क्या है कहना,
जिसमें जल्दी दाल पका करती थी।
गोरी माँग मनौती,जिसकी पाट चढ़ा करती थी,
गर्रा पर डोरी डार नीर भरती थी।
गाती थी सोहरो गीत,मन-मन के,
रखकर सिर पर खेप,साथ चलती थी,
एक दूजे से हाथ मिला,हिलती डफलती सी।
पर वही कुआँ आज कचरा से पटा पड़ा है,
हैण्डपम्प जो वही बगल में एक गढ़ा है।।

बुन्देली-अगर हम


अगर हम सत्ता में होते,तौ अपनौ घर भर रय होते
जो हमें पौचाउते जिताके सत्ता में
उनई की छाती पै मूँग दर रय होते।
अगर मिल जातौ कऊँ हमें मंत्री पद,
तौ एवारे के न्यारे हम कर रय होते।
चिरईयन में नईं अघाउते तौ,
मुर्गा हलाल कर रय होते।
फकलन खाँ फेंक-फेंक,माल धर रय होते।
छोड़ कें लम्पन कौ परे बा घास,मुस्याल चर रय होते।
हम तौ उड़ाउते खूब गुलछर्रे,
जरूवा हमें देख-देख जर रय होते।
जो कऊँ मिल जातौ बोलवे हमें संसद में,
तौ बिना सिर पैर के हम लर रय होते।
जो हमें दिखाउत हैं,बड़ी‘-बड़ी आँखें आज,
वे भी हमें देख-देख डर रय होते ।
अगर हम सत्ता में होते,तौ अपनौ घर भर रय होते....

-सियाराम अहिरवार
   टीकमगढ़,(म.प्र.)

    12
 

बुन्देली गीत-मेरे प्यारे देश को प्रणाम
धोरऔ चरन संमुदर,माथौ मंदाकिनी ललाम,
लहर-लहर लहरावै झण्डा पूर्वाचल पर प्यारौ।
पच्छम में संजा कौ सूरज घटा दिखाउन न्यारौ,
खेलत रए घूरा में ई की राम किशन,
शांति दूत बनकें नेरू ने पंचशील अपनाओ,
गोतम,गांधी,वीर,संदेशौ दूर-दूर पौचाओ,
कारज कीनों है अशोक सौ,सबई करत परनाम,
तिलक,लाजपत,भगत,इंंिदरा के सुत अमर भये हैं,
लालबहादुर,अटल,इंंिदरा सूरा समर लये है।
पैदा हुइयें और हजारन नईं रूकैगौ काम,
कितनऊँ ही हवपदायें आहें पाछूँ नहीं हटेंगे।
सामूँ रै हें पीठ न दैहें दुस्मन सें निबटेगे,
कर दैहें न्यौछावर सरबस हुइयै ऊँचै नाम।
- मनमोहन पाण्डेय, बिजावर (म.प्र.)

देशप्रेम गीत-वीर सिपाही-

हम भारत के वीर सिपाही आगे बढ़ते जाएँगे।
आँधी और तूफानों से भी नहीं कभी घबराएँंगे।
सीमा पार हो जंग कहीं या आफत कोई भी आए।
पीछे नहीं हटेंगे हम भी,बिन उसको ही सुलझाएँ।
राष्ट्र का सम्मान तिरंगा,ऊँचा सदा उठाएँेगे।
हम भारत के वीर सिपाही आगे बढ़ते जाएँगे।
हो कश्मीर या उत्तरांचल,अरुणाचल व राजस्थान,
आक्रमण समय बाढ़ आपदा लड़ते जंग एक समान।
सर्दी गर्मी या बर्षा हो,सबको सहते जाएँेगे।
आंधी और तूफानों से भी नहीं कभी घबराएँगे।
अनुशासन का पालन करते नहीं किसी से डरते हम।
लक्ष्य विजय का रखते हैं पर मरते भी जीते हैं हम।
जान भले ही जाये ‘पूरन’ भारत विमल बनाएँगे।
हम भारत के वीर सिपाही आगे बढ़ते जाएँगे।।
- पूरन चन्द्र गुप्ता‘पूरन’, टीकमगढ़,(म.प्र.)
पेज-13
पुस्तक समीक्षा-‘‘काॅमन लव स्टोरी’(कहानी संग्रह)
        सामाजिकता एवं वैयक्तिकता को शब्दांकित करता कहानी संग्रह ‘काॅमन लव स्टोरी’ वरिष्ठ साहित्यकार श्री अनुपम श्रीवास्तव ‘निरुपम’(संप्रति-प्रधान न्यायाधीश,पारिवारिक न्यायालय,टीकमगढ़) का प्रथम कहानी संग्रह है। 19 फरवरी 2014 को दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में विमोचित इस संग्रह में उनकी 14 चुनिंदा कहानियाँ शामिल हैं। इन परिवेशीय कहानियों के प्रसंग और पात्र पाठक को अपने आसपास विचरते प्रतीत होते है। परिचित कथानक होते हुए भी पाठक को अंत तक बाँधे रहने में लेखक पूरी तरह सफल है। लेखक का कवि हृदय कहानियों को छायावादी रूप भी दे देता है जो कहानी ‘सड़क उदास है’ और ‘बचे हुए पल’ में दिखाई देता है।‘सड़क उदास है’ नित्य प्रायोजित ‘बंद’ के दुष्प्रभावों और शहीदों की स्मृति के प्रति उपेक्षा को सड़़क की जुबानी व्यक्त करती है। वहीं ‘बचे हुए पल में झूले के माध्यम से माता-पिता से दूर होते जा रहे बच्चों के कारण एकाकी जीवन जीते बुजुर्गो की पीड़ा को बड़े ही भावपूर्ण शब्दों और प्रतीकों द्वारा बताया है। ‘कहानी के किरदार’ और ‘काॅमन लव स्टोरी’ कहानियाँ काॅलेज जीवन के आम अधूरे प्रेम-प्रसंगों पर आधारित है जिनकी मधुर स्मृतियाँ हर कोई अपने मन में सँजोए रखता है। किन्तु अचानक अपने प्रियजन से भेंट होने पर सायास अपने को उससे अलग कर लेता है।
    ‘ओनली सोशल जस्टिस’ उन कथित सभ्य जनों की स्वार्थकेन्द्रित छद्म न्याय भावना की पोल खोलती है,जो हर नियम-कानून को अपनी सुविधानुसार परिभाषित करने से नहीं चूकते। ‘फल’ कहानी उसे बूढ़े व्यकित की भावनाओ को व्यक्त करती है जो स्वयं को एक बच्चे के लिए आम तोड़ने मे अक्षम पाता है। उसे लगता है कि उसकी स्वयं की इच्छाएँ भी उसकी पहँुच से दूर जा चुकी है। ‘एक कान का आदमी’ टूटते पारिवारिक रिश्तों पर केन्द्रित मर्मांतक कहानी है। ‘कटा हुआ पेड़’ एक बीमार आदमी की भावनाओं का दर्पण है। ‘मूल्यांकन’ कहानी दोहरे चरित्र और अभिजात्य वर्ग की संकुचित सोच को व्यक्त करती है।
    इन कहानियों में निहित भाव,प्रवाह और प्रसाद गुण इन्हें पठनीय तो बनाते ही है,पाठक को अपने भीतर झाँकने को प्रेरित भी करते हैं। बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित इस संग्रह को आकर्षक गेटअप,सुंदर छपाई,बढि़या कागज और आम पाठक की जब के अनुकूल कीमत ओर भी विशिष्ट बना देते है। कुल मिला कर इस संग्रह में एक सामान्य पाठक के लिए वह सब कुछ है जो वह चाहता है।
                          समीक्षक - रामगोपाल रैकवार‘कँवल’,टीकमगढ़ (म.प्र.)
14
आलेख-‘‘सरदार के.एम. पणिक्कर’’
        सरदार के.एम.पणिक्कर एक मलयालम भाषी थे जिन्होने महात्मा गांधी जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। वे कन्याकुमारी से कश्मीर तक के सब नेताओं से संबंध रखने वाले थे उनकी मृत्यु का पचासवीं वर्षगाँठ 10 दिसम्बर सन्-2013 को था।
        सन् 1963 में वे पहले कश्मीर विश्वविद्यालय और बाद में प्रसिद्ध मैसूर विश्वविद्यालनय में उप कुलपति रहे। एक प्रसिद्ध पंडि़त होने से विश्वविद्यालय के आधुनिक विकास में उन्होने बहुत योगदान किया। भारत की देशीय और भावात्मक एकता के लिए उनका योगदान को सभी ने सराहा है।
        14 मई सन् 1894 को उनका जन्म मध्.य केरल के ‘कुट्टनाड’ नामक स्थान में हुआ था। उन्होंने भारत की जनता की एकता और बौद्धिक शक्ति बढ़ाने के लिए सफल प्रयास किए। गांधी जी की सलाह मानकर वे सिखों के बीच शांति कायम करने के लिए अमृतसर के अकाली सहायक ब्यूरो में सेवा करने लगे। अगस्त सन् 1924 में वे दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले मुख्य संपादक बने।
        विश्व शांति के लिए     नवम्बर 1926 में पेरिस में जो सम्मेलन हुआ उसमें भी वे उपस्थित रहे थे। 15 नवम्बर सन् 1930 के पहले गोलमेज सम्मेलन और 15 नवम्बर सन् 1932 के तीसरे गोल मेज सम्मेलन में उन्होंने भाग लिया था। पटियाला    और बीकानेर में मंत्री के रूप में सेवा करते समय भारत की स्वतंत्रता और एकता के लिए उन्होंने अपना सक्रिय योगदान दिया। जनवरी सन् 1948 में वे चीन में स्वतंत्र भारत के प्रसिद्ध दूत रहे। भारत की विदेश नीति तैयार करने के लिए उन्होंने पंडि़त जवाहरलाल नेहरू जी को भी अपना मार्गदर्शन दिया।
        एक साहित्यकार के रूप में कविता,कहानी, उपन्यास, इतिहास आदि क्षेत्रों में उन्होंने अपनी कलम चलायी। उन्होंने मलयालम में 47 पुस्तकें और अंग्रेजी में 52 पुस्तकें प्रकाशित की थी। ‘भारतीय इतिहास का विहंगावलोकन’ नामक इतिहास ग्रंथ भारत का बहुत प्रसिद्ध इतिहास ग्रंथ है। /
के.क.े कोच्चुकोशी
तिरूवनन्तपुरम (केरल.)

15
आलेख-‘मन की पुकार-एक अंतरंग हूक’’
‘सत्य’ कवि ने कहा है कि-जब प्यासा था दो बूँदें नहीं दे पाये तुम,
        अब प्यासे नहीं तो क्यों सागर छलकाते हो! अरे!
        जन्मों-जन्मों से भटक रहा,तेरी इस माया नगरी में,
        अब चाह नहीं तो तुम क्यों जन्नत फरमाते हो।।
         यही है संसार की विडम्बना कि जो भी करना चाहते हो सदैव उसके विपरीत परिथितियाँ बनती हंै, मिलती हैं। अब करो संघर्ष,बच्चू,ऐसा महसूस होता है जैसे कि कीचड़ में चलकर/दौड़कर प्रतिस्पर्धा के साथ लक्ष्य(जीवन मरण से मुक्ति ‘निर्वाण पद मोक्ष’) पाना है उस पर दुहाई/सीख यह कि बेटा कमल का फूल कीचड़ में ही खिलता है। अब लगे रहो इन्हीं कर्मों के खेल में ये भी अनंतानंत है समुद्र की विशाल लहरों की तरह और हर तन-मन को तोड़ कर रख देती हंै।
        इन लहरों से ज्यादा तीव्रतम है मन की अंतरमन-वाह्यगमन स्थिति ऐसा लगता है तूफान ही आया हुआ है अर्थात अकेला तन-मन साधना के द्वारा एक साधक अपने पूरे जीवन काल में या तो कर्मों का बंधन करता है या उनका क्षय करता है। वह निरंतर/सतत् रहकर
साधना करते हुे साधक या तो इस संसार में डूबता है या सदगुरु,सद्आचरण कर कमल के फूल की भांति खिलता है और इतना खिलता है कि खिलते-खिलते केवल्य ज्ञान को प्राप्त कर ‘निर्वाण’ पद प्राप्त कर लेता है।
        ऐसे अनेक नाम जिन्होंने अपने कर्मो का क्षय करते हुए सम्मक दर्शन,सम्मक ज्ञान,सम्मक चरित्र की साधना के द्वारा यह कहकर साधना की है कि- ‘जब से चला हँू मेरी मंजि़ल पर नज़र है।
               आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।।
        इसी क्रम में प्रख्यात भारतीय संत कबीर दास जी हुए है। उन्होंने यह तक कह दिया कि-‘ज्यों कि त्यों धर दीनि चदरिया’ और इस प्रकार संसार के सार को समझते हुए ंससार नईया पार कर ली और जगत को ज्ञान देकर उपकृत किया।।
            -एम.जैन पोतदार ‘सत्य’,टीकमगढ़ (म.प्र.)                16
आज़ाद नज़्म- बहादुर शाह ‘‘ज़फ़र’’

प्लेटो का तसव्वुर तू! पैरहम शाही-जि़न्दगी दरवेशाना
ए शायरो मुफक्किरो शहंशाहे-हिन्दोस्तांँ
संग बुनियाद था तू सुतूने-आज़ादि-ए-हिन्दोस्ताँं
अलमबरदार था तू जंगे-आज़ादि-ए-हिन्दोस्तांँ।
हुकूमत जब तिरी कस्रे-देहली तक ही महदूद थी
तस्लीम सबने किया तुझको शहंशाहे-नौ हिन्दोस्तांँ।
वे मराठे जो हमेशा हरीफे़-सल्तनते-मुग़लिया रहे,
उन्हीं पेशवा के पिसर नाना साहब ने-
बेन्याम शमशीर की तेरे परचम के तले,
एकता,प्रेमो-कुरबानी का संदेश पाकर तिरा
सर से कफ़न बाँधें ला तादाद अफ़राद आगे बढ़े तिरी ताईद में।
तेरे इक इशारे पर जां सिपारों नें कटा डाले अपने सर
शम्मअ पर जैसे परवाने बाज़ी लगा देते है जान की।
एक दरिया शहीदाने-वतन के ख़़ून का
बेकसो-मज़लूम भारत माँ के कदमों की जानिब था रवाँ,
वो खंू हिन्द का था न मुसलमां का था
वो लहू मुहब्बाने-वतन का था हिन्दोस्ताँ के बेटों का था।
फिरंगी के जौरो-सितम के सामने नमरूदो-फिरऔन भी शरमा गए
शहज़ादों के कटे सर जब सामने तेरे लाए गए,
पुर सुकूँ लहजे में था तूने कहा-
पिसर आते इसी तरह सुर्खरू होकर पिदर के सामने।
कस्रे-सुल्तानी में ही तू कैद में डाला गया
असीरी में किसी ने तंज़ तुझ पर था किया,
दास्ताने-शाने-हिन्दोस्ताँ ख़त्म शुद
ताकते-शमशीर-हिन्दोस्ताँ ख़त्म शुद
जानो-अमाँ की खैर अपनी माँग लो अब
लागरी-पीरी के आलम में भी खूने-शाही खौला था तब तिरा
दी दुहाई,तूने थी हिन्दोस्ताँ के ईमान की,
अपनी आज़ादी के लिए-
तख्त-लंदन तक चलेगी तेग़ हिन्दोस्ताँ की,
तेरे दीवानों ने की आरजू पूरी तिरी।
एक हसरत बाक़ी रही दिल में तिरे,
काश! सुपुर्दे-ख़ाक होता अपने वतन की ख़ाक में।
ए दास्ताने ’शाने’ माजिए-हिन्दोस्ताँ,
ए संगे-बुनियाद-तामीरे-नौ-हिन्दोस्ताँ,
तू कहीं सोया रहे असमें क्या
तुझको नवाज़ेगी तारीख़े-नौ-हिन्दोस्ताँ,
अस्सलाम-ए-आक्ष़्िारी ताजदारे-किश्वरे हिन्दोस्ताँ।।
        -महबूब अहमद फारूकी ‘महबूब’,बिजावर (म.प्र)
            17
 

लंबी कविता-राजनीति का खेल
फ़ूलों की क्वारी में भी अंगार कहाँ तक झेलोंगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
आतंकी तूफ़ानों में घायल कितने परिवार हुये।
कितने कश्मीरी अपने ही घर मेंवे घर द्वार हुये।।
शरण ढ़ूँढ़ते फिरते भूखों मरने को मजबूर हुये।
दिल के टुकड़ों के मासूमी आरमां चकनाचूर हुये।।
नौनिहाल ये भूखे रह ग़म के आँसू पी जाते हैं।
खुद अपनी कीमत की तख्ती सीने पर लटकाते हैं।।
जब इंसां रोटी के बदले दिल के टुकड़े बेचेगा।
राजघाट का सत्याग्रह वाला बापू क्या सोचेगा।।
इन मासूमों के आँसू की पीड़ा,कब तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
स्वायत्ता के नाम केन्द्र से कितने पैकेज मिलते है।
सत्ता के गलियारों में केवल गुलाब ही खिलते हैं।।
स्वायत्ता के नाम देश से ही प्रदेश की दूरी हैं।
इसीलिए कानून व्यवस्था आधी और अधूरी है।।
स्वायत्ता के नाम समूचा काश्मीर ही काट रहे।
काश्मीर को उलझा कर सत्ता आपस में बाँट रहे।।

मासूमों के जीवन में भी जब इतनी मजबूरी है।
हिन्दुस्तां के संविधान की ही तस्वीर अधूरी है।।
एक देश में दो-दो संविधान भी कब तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
एक ओर नेता घर-धर रंगीन टीवियाँ बाँटंेगे।
अगर जीत लेगे चुनाव गलियाँ खुशियों से पाटेगें।।
सत्तासीन राजनेता सरकारें खाली करते है।
समर चुनावी आज देश की हालात माली करते हैं।।
जीवन भर के लिये लुटेरांे को पेंशन बंध जाती है।
कहीं भूख की डायन माँ से बच्चे भी बिकवाती है।।
पूंजीपतियों से बढ़ कर भी नेताओं की चाँदी है।
इसीलिए अधिकारी की कुर्सी बन जाती आँधी है।।
किलकारी वाले मुख की भी सिरहन कब तक झेेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
समाचार के पन्ने पर उन मासूमों के चित्र पढ़े।
शासन सत्ता पर उनने कर दिये अनगिनत प्रश्न खड़े।।
वहीं चुनावी वादे पढ़कर मैं मन ही मन हारा था।
खुद अपने ही भारत के सिंहासन को धिक्कारा था।।
जन-सेवा के छली मुखौटों को उतारने आया हँू।
आज तुम्हारी ही तस्वीरें तुम्हें दिखाने लाया हँॅू।।
जनता माफ नहीं कर सकती क्रंांित देश में आयेगी।
एक-एक जनता के पैसे का हिसाब ले जायेगी।।
भारत की धूमिल होती तस्वीर कहाँ तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
तुष्टीकरण नीति से अब कल्याण न होने वाला है।
केवल लोरी सुनकर भूखा लाल न सोने वाला है।।
सेना तो हिदुस्तां की पूरी-पूरी खुद्दारी है।
वोट बैक के खातिर ही घुसपैठ बनी लाचारी है।।
इन्हीं नीतियों के कारण तो युवा-शक्ति भी भटक रही।
अपने ही मुकाम पर आकर राष्ट्र-शक्ति भी अटक रही।।
शिक्षा अरू सेना में भी मजहब के डोरे डाले थे।
असफल हुये प्रयास किन्तु यह प्रश्न अनुत्तर वाले थे।।
पेज 18-19
अगर नहीं इनके उत्तर तो प्रश्न कहाँ तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
सदियों से जीवंत खड़ा सौहार्द्र हिलाया जाता है।
भारत के बेटों को आपस में भड़काया जाता है।
चाहे मजहब का विवाद या गो रक्षा का मुद्दा हो।
जाति धर्म का हो चाहे भाषाई गुत्थम-गुत्था हो।।
जले देश का कुछ भी रोटी राजनीति की सिकती है।
अब तो हर दुकान पर खादी वाली टोपी बिकती है।।
नारी के सम्मानों का भी मोल यहाँ पर बिकता है।
नौनिहाल का सोता चेहरा फुटपाथों पर दिखता है।।
भूख और भय ये बिकता ये बचपन कब तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
कल तक जिन्हें आँधियाँ के नापाक इरादे भाते थे।
उन्मादी तूफान के संग अपने कदम मिलाते थे।।
भाड़े केे तूफान आज उन पर ही भारी पड़ते है।
तूफानी आँधी में अब उनके भी पैर उखड़ते हैं।।
अब तो उनकी भी अस्मत अंगारे छलते आज वहाँ।
नीड़ जलाने उनका भी ंअंगार मचलते आज वहाँ।।
भटक रही थी जो पीढ़ी उसका भी भ्रम अब टूट रहा।
अब तो आँधी तूफानों के ही विरुद्ध स्वर फूट रहा।।
भटक रही पीढ़ी के मन की उलझन कब तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
काश्मीर की अगर तर्ज पर प्रान्तवाद में प्रांत जुटे।
कहीं तीन सौ सत्तर जैसी धारा को भी माँग उठे।।
इससे तो अच्छा है हिन्दुस्तां को एक बनाते तुम।
सारे हिदुस्तां में केवल जन-गण-मन ही गाते तुम।।
अच्छा होता अखिल राष्ट्र में एक ध्वजा फहराते तुम।
कश्मीरी बंगाली नहीं हिन्दुस्तानी कहलाते तुम।।
अच्छा होता सारे दल मिलकर अपनी सहमति देते।
काश्मीर की जटिल समस्या फिर खुद ही सुलझा लेते।।
केशर की क्यारी की पीड़ा आखिर कब तक झेलोगे।
वोटों की ही राजनीति का खेल कहाँ तक खेलोगे।।
- लक्ष्मी प्रसाद गुप्त‘किंकर’,
   ईशानगर,छतरपुर,म.प्र.

20
कविता-‘‘डर’’

डरकर जियो
सरकार से
शासन-प्रशासन से
और डरकर मरो
भगवान से
आदमी के मरने-जीने में
डर घुस गया है
नहीं डरे तो राष्ट्रविरोधी
नहीं मरे तो नरक के भोगी
वैसे विरोध करने की औकात
होती नहीं जनता की,
लेकिन भाव-विचार
का प्रदर्शन भी
प्रजातंत्र में राजद्रोह ही
माना जाता है
माध्यम चाहे भूख हड़ताल हो
या साहित्य के माध्यम से
सरकार गांधीवादी आन्दोलन
को जलियावाला बाग बना देती है
और कला के माध्यम से विरोध
को जेल भेज देती है
जो नहीं डरा
और बच गया
तो फिर सरकार
में शामिल कर लिया गया।।

कविता-‘पानी-पानी’
पानी तुम्हें क्या सज़ा दी जाए
इस अपराध की
जो बाढ़ कांड तुमने किया है।
हजारों निरपराधों की मौत का
सामान किया है।
क्या कहना इस बारे में।
गर्दन कटती है तो तलवार
को सज़ा नहीं देते मानव
सज़ा उन्हें दो
काटे हैं पहाड़
मिटाए है जंगल जिन्होंने।
नदियों की राह में रोड़े
बनकर विकास की बीन
बजाई है जिन्होंने।
मैं तो बहती हूँ
नदी हूँ।
पानी कभी कम
कभी ज्यादा।
कभी बहुत ज्यादा।
शर्म से पानी-पानी
कह रहे हो
हम तो पानी हैं ही।
पानी रहेंगे भी।
अपनी मौत के तुम
स्वयं जिम्मेदार हो।
विकास के खेल में
पानी से खिलवाड़ करोगे
तो पानी-पानी तो होगा ही।
-देवेन्द्र कुमार मिश्रा
 चंदनगाँव, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

21
मुक्तक बन्ध
नहीं शेष दुनिया हमारी रहेगी,बाक़ी न जन्नत तुम्हारी रहेगी।
फ़क़त जान अपनी जो प्यारी रहेगी,क़यामत तलक़,जंग ज़ारी रहेगी।
हे बुन्देलभूमि तुझे शत नमन है, जीवित क्या मीठी ये गारी रहेगी।
रसूले-हिन्द लायेंगे जन्नत ज़मीं पर,वरना ये दुनिया भिख़ारी रहेगी।
इतरा न इतना ‘समीर’ इस हुनर पर,हारी ये बाज़ी तो क़ारी रहेगी।।

यहीं मंजि़ल नहीं अपनी,आगे और जाएँगे।
बिछाये राह में मरी,काँटे और जाएँगे।।
तेरी ज़र्रानवाज़ी पर,शक़-शुबहा नहीं लेकिन,
अभी मुफ़लिस की जे़बों से रूपये और जाएँगे।।
- मुकेश चतुर्वेदी‘समीर’,सागऱ,(म.प्र.)

लघुकथा--‘‘अपनी-अपनी सोच’’

                                    -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’    
   मैं साहित्यिक गोष्ठियों की रपट बड़ी होने के कारण एक पूरे कागज़ पर कप्म्यूटर से टाइप करके  विभिन्न समाचार पत्रों में भेजा करता था, किन्तु उन गोष्ठियों के होने की सूचना जो कि मात्र चार-पाँच पंक्तियों में होती थी इसीलिए वे एक पेज में चार वार आ जाती थी। उन्हें दो दिन पूर्व में  छोटी-छोटी पर्चियों के रुप में काट कर  समाचार पत्रों में देने जाता था।
        एक दिन एक समाचार पत्र के पत्रकार मुझसे बोले- यार तुम बहुत कंजूस हो? जो इतनी छोटी सी पर्ची में खबर बनाकर लाते हो। मैने कहा- मैं आपकी सोच के अनुसार कंजूस ही सही, लेकिन मेरी सोच कुछ और है। मैं प्रकृति से बेहद प्रेम करता हूँ  इसीलिए कागज की बचत करता हूँ । जो काम एक कागज के एक छोटे से टुकडे से हो जाता है उसके लिए पूरा एक पेज क्यों बर्बाद करुँ, फिर एक पेज में यह खबर चार बार आ जाती है, इस प्रकार मैं तीन कागज की बचत हर बार करता हूँ और मैं वृक्षों को कटने से बचाता भी हूँ। मैंने नारा दिया है- ‘‘कागज़ बचाइये तो पेड़ भी बचेगें’’ मेरी बात सुनकर, वे पत्रकार महोदय शर्मिदा हो गए, फिर अपनी शर्मिदगी को दूर करते हुए मुझे शाबासी देने लगे।।  
              -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
                   टीकमगढ़ (म.प्र.)

22

कविता-‘जाडे़ में’
इस साल के जाड़े में......
सुबहें ठिठुरती हंै, शामें जगती हंैं,
रिश्तों के भी हाथ,अकड़े जाते हैं।
हालात् जकड़े जाते हंैं।
इस साल के जाड़े में......
संबध्ंाों को लग गई है ठंड़
रंजिशें भी हो चली उद्दंड,
शीघ्रताएँ खींच रही हैं
और रजाइयाँ भींच रही हैं।
इस साल के जाड़े में.......
स्याही कसमसाती है
कलम अचकचाती  है,
बर्फ जम रही है भावों की,
जरूरत है अलावों की
इस साल के जाड़े में......
धूप में बैठने का मन करता है
सूरज कुँहासे में रहता है,
तन को मिले आवरण,
तभी हो जन-जागरण
इस साल के जाड़े में
कविता-‘हालात्’
सुख का अनुभव
न कर पाने की क़मज़ोरी
लाद दी गई,
दुःखों के हालात् के
कमज़ोर कंधों पर,
और
अपने कंधों पर बेठा लिया
उन दोनो को।
रोया गया आँसुओं संे
अनबन कर।
सोया गया
नींद से बेवफ़ाई कर
घुस गए जि़न्दगी की मिल में
बैसाखियाँ लेकर।।
- अमिताभ गोस्वामी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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‘नौनी लगे बुन्देली’
  (विश्व का‘बुन्देली’ में प्रकाशित पहला हाइकु संग्रह)
टीकमगढ़ (म.प्र.) के बहुचर्चित युवा कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ का सन् 2010 में रचित विश्व में ‘बुन्देली’ का पहला हाइकु संग्रह’ ‘नौंनी लगे बुन्देली’ जिसमें 88 पेज में 100 ‘बुंदेली हाइकु एवं राना लिधौरी का सम्पूर्ण परिचय पढ़ें। मात्र 80 रु. का एम.ओ. भेजकर प्राप्त करें। संपादक के पते पर प्राप्त करे।
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23
 

1-कविता-‘‘सुबह सुंदरी’
सुबह सुंदरी
आसमान के आँगन से विदा हो
संतरंगी किरणों के रथ पर सुशोभित
आ रही है
धरती माँ की गोद में।
तन पर सिंदूरी साड़ी सितारों वाली,
दुगुना कर रही है सौंदर्य।
अगवानी में
गंगा की चंचल लहरें
उतावली हैं देने को अघ्र्य।
कोलयों के पंचम सुर की शहनाई
उतरती जा रही है हृदय में।
शीश उठाए पहाड़
आत्म विभोर हुए।
हवा की झुरझुरी के झाँझ से
ताल मिलाते पीपल के पत्तों ने
बजाई तालियाँ,
पूरा हुआ
माँ-बेटी का मिलन
अपनेपन का सुखद स्पर्श पा
खुल गए होंठ
बिखर गई फूलों सी हँसी
और फिर
आँखों में झरने लगे मोती
ओस की बूँदों के रूप में।।

2-कविता-‘‘राखी’’
राखी के धागे
दिखने में चाहे
कमज़ोर ही लगे
किंतु कलाई पर
बँधते ही
रिश्तों को कसकर
बाँध लेते हैं
कभी न छॅटने के लिए
दिखने में
उतने सुंदर हो या न हों
किंतु रिश्तों के बीच
अनदिखे प्रेम-भाव का
अकथनीय सौंदर्य
उभार देते हैं
ये धागे प्रतीक हैं
परंपरा के
मर्यादा के
आत्मविश्वास और
भाई-बहन की आस्था के
बड़ी ताकत है इनमें
जातीय बंधनों से
ऊपर उठकर
रिश्तों के बीच
नया रिश्ता
कायम करते हैं
कर्मवती और हुमायूँ का
विश्वास बनकर।। 
-अरविन्द अवस्थी,
मीरजापुर (उ.प्र.)
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साभार पुस्तकंे प्राप्ति स्वीकार:- 
71-‘भूकंप’ (क्षणिका संग्रह),    कवि-डाॅ. राम सहाय बरैया, ग्वालियऱ (म.प्र)
72-‘किलकत लाल पालना लेटे’ (शिशु गीत संग्रह),-डाॅ. राम सहाय बरैया,
73-‘एम उड़ान उन्मुक्त गगन में’ (काव्य संग्रह),कवि-शोभारानी तिवारी इंदौर(म.प्र)
   
24


‘‘ताजमहल बनाना चाहिए’’दास्तां इश्क की इक हमें भी बनाना चाहिए।
जिक्र तारीख में अब हमारा भी आना चाहिए।।
हो दिलरूबा कोई हमारी नज़रों में भी।
जन्नत कदमों में जिसके हमें नसीं होना चाहिए।।
शाहजहाँ- सी हों नज़रें हिंदवासियों की।
भारत-माता से दिल मुमताज की तरह लगाना चाहिए।।
बने इक ताजमहल मादरे वतन के लिए।
दे लहू अपना गारा इसके लिए बनाना चाहिए।।
पत्थर वतन परस्ती का लगे नींव में।
दीवारें जांबाजी के कंक्रीट से इसकी उठाना चाहिए।।
एकता भाई-चारे समता सौहार्द्र की हो मीनारें।
मोहब्बत के दरीचे में फूल अमन के खिलाना चाहिए।।
बेबा-ए’-शहीद के चिराग़ में हो रोशनी इतनी।
अमावस में पूनम-सा ‘उर्मिल’ इसे जगमगाना चाहिए।।
‘‘कितना अप्रासंगिक है’
सच कितना अप्रासंगिक है,
लड़की का घर में अकेला होना?
ऐसे में किसी तरुण का,
घर में प्रविष्ठ होना।
अचानक चिपक जाती है,
घर की दीवारों से,
पड़ौसियों की डेढ़ दर्जन आँखें
और कान।
अपने-अपने तरीकांे से,
संबधों को परिभाषित करते हुए।
लड़की के कानों से टकराती हैं।
दीवारों को चीर कर आती हुई
उनकी फुसफसाहटें।
जैसे किसी ने उड़ेल दिया हो,
कानों में खौलता हुआ शीशा।
सच कितना भयावह है.....
गंगाजल से पावन रिश्ते को,
यूँ कलुषित होते हुए देखना ?
 -सीमा श्रीवास्तव ‘उर्मिल’,
       टीकमगढ़ (म.प्र.)

            25
‘‘नयी सोच’’
उन्नतियाँ ही सहचरी हों आपकी! नववर्ष में
तपो त्याग ‘गतवर्ष के हों परिवर्तित उत्कर्ष में।
प्रे्रम, त्याग और भाईचारा,बिगुल बजाएँ साथ में
नये दीप नयी रौशनी से,मिले सफलता हाथ में।।
फिर से आए पिछला इतिहास,
मानव सीखे हास परिहास।
सोच तुम्हारी नई हो तो दिशा मिले संस्कार को,
सत्य हमेशा विजित हो मात मिले अंहकार को।
कह रहा वक़्त का तकाज़ा नया लिखें कुछ नये हाथ ये
तोड़ दो, और मोड़ दो सोच की गंदी लहर,
जीवन के प्याले में,भरता हो जो ज़हर ही ज़हर
कर कमल मैं जोड़-जोड़ कर
करती हँू ये विनतियाँ
नव जीवन के नये पथ से
शुरू करो नयी गिनतियाँ।।

छत्तीसगढ़ी कविता-
‘‘बछिया सही बेटी’’
भोला राऊत आके,बतावयहे,
कबरी गाय हावें, गभिन
आजे, च काली मा जनम ही,
तईसे लागथ हावे,मालकिन।!
मालकिन हा....
कबरी गाय बर करथहावे विनती
वो दारी बछरू जनमें रेहे
ये दारी देवे बछिया ‘छटकिन’
सपट के सुनथहावे,बेटी हा दाई के गोठ
हाँस,हाँस के होवथ हावे मन मा लोटपोट
घर में भौजी के गोंड धला हावे भारी
काली तो दाई तंेहा,देवत रेहे बोला गारी
ये दारी नोनी नहीं
देे ते हा़़़़़़़़़़़़़़़़़......... .बाबू।
बाह रे दाई! वाह
तोर गोढ में नई हावे काबू।
भौजी ला बाबू! अऊ गाय ला
मांगथहावस बछिया
हमर समाज के सोच हावे,
कईसे घटिया
वो दिन कब आही ?
हमर समाज मा ,जब बछिया सही बेटी ला छला
माँगबो हम सब बडै नाज़ मा।।

(अर्थ-वो दारी-उस समय। गोढ-बातंे।
छटकिन-जल्दी। नोनी-बच्ची।,घला-भी,
सपट के -छिपकर )

/ डाॅ. अनीता गोस्वामी,
     टीकमगढ़,(म.प्र.)
26
‘‘सपने कुंवारे’’
हर सपने में बज उठी शहनाई।
यौवन ने जब मदिरा छलकाई।।
दे रहा कोई मौन निमंत्रण,
तन, मन में नहीं रहा नियंत्रण।
हर अंगडाई उसे पुकारे,
महक उठे सपने कुँआरे।
अधरों पे जगने लगी प्यास
हर आहट पे है किसी की आस,
बालों से खेले पवन झकोरे,
आँखों में तैरे गुलाबी डोरे।
अंग-अंग सजे साँझ-सकारे,
महक उठे सपने कुँआरे।
नित नूतन उमंग जगे,
तन्हाई में कोई संग लगे,
मनचाहे रूठना - मनाना,
तन चाहे किसी को अपनाना।
चंचल चितवन राह निहारे,
महक उठे सपने कुँआरे।

2-‘‘सहारा’’
गिरा दीजिए नफ़रत की दीवारों को,
मिटा दीजिए फ़ासलों की दरारों को।
भला ही करें बुरा न चाहें कभी किसी का,
सिर आँखों पे रखें सदा बेसहारों को।
डूबते को तिनके का सहारा बहुत है,
बद्दुआ न दें कभी किस्मत के मारांे को।
झाँक के देखिए पहले गिरेबां में,
फिर दीजिए इल्ज़ाम दूसरे गद्दारों को।
हो हिम्मत तो रूख़ बदल दें हवाओं का,
वर्ना न छेडि़ए जलते हुए अंगारों को।
/ सुधीर खरे ‘कमल’,बांदा(उ.प्र.)

कविता-‘‘आँसू’’
याद किसी की आए तो
शबनम बनकर निकल आते हैं।
टूट जाए दिलों का रिश्ता तो
बरसात बनकर फिसल जाते हैं।
मिले बहुत देर बाद कोई तो
प्यार से उमड़ आते हैं।
अगर बिछड़ जाए अपना तो
दुःख से छलक जाते हैं।
चोट खाता है दिल तो
बर्षा के साथ बह जाते हंै।
नफ़रत समा जाए दिल में
तो शोला बन जाते हैं।
इन्हीं में दर्द,इन्हीं से प्यार,
खामोशी से दुखड़ा सुनाते हैं।
रिश्ता दिलों का हो या जिस्म का,
पर आँखों में छा जाते है।
समय नहीं होता इनका कोई,
बिना बुलाए आ जाते हैं
कोई कीमत नहीं लगा सकता,
इनकी यह ईश्वर तक को
झुका देते है।
आँसू है नाम इनका
यारो जो इंसानी रिश्तों में
पाए जाते है।।
-महेश खरे  ‘गुरु’,
    टीकमगढ़,(म.प्र.)
पेज-27
गीत खण्ड-
‘‘1-किसी दिन देख लेना तुम’’
चले जाएँगे धरती से किसी दिन देख लेना तुम,
बँधे जायेगंे अर्थी से किसी दिन देख लेना तुम।
मैं सोया फिर न जागूँगा, न घर वाले जगाएँंगे
बंद हो जाएगी धड़कन, किसी दिन देख लेना तुम।
न अपने साथ जाएँगे, न सपने साथ जाएँगे
धरा रह जाएगा सब धन, किसी दिन देख लेना तुम।
जहाँ खेले जहाँ दौड़े वो गलियाँ छोड़ जाएँगें
छूट जाएगा घर आँगन, किसी दिन देख लेना तुम।
इस जीवन के सुहाने दिन,हमेशा याद आएँगे,
बिछड़ जाएगा तन और मन किसी दिन देख लेना तुम।
जिन्हें माना हमने अपना वहीं हमको जलाएँगे
राख हो जाएगा यह तन किसी दिन देख लेना तुम।
रोते आए थे दुनिया में रूला के सबको जाएँगे
करेंगे हम प्रभु दर्शन किसी दिन देख लेना तुम।
चले जाएँगे धरती से किसी दिन देख लेना तुम,...

2-‘‘प्रेम से सबको अपना बनाए’’
भगवान हमें देता है जीवन हम भी तो कुछ देना सीखें
जो भूखे हैं उन्हें खिलायें प्यासे को जलपान कराएँयें।
हर भूखे की भूख मिटायें,जो रोते हैं उन्हें हँसाएँ
गिरे हुए हों जो जीवन में आओ उन्हें उठाना सीखें।
जो बिछुड़़े है उन्हें मिलाएँं जो रूठे हैं उन्हें मनाएँं
प्रेम से सबको अपना बनाए खुद भी हँसे और सबको हँसाएँं।
जिनकी आँखे दर्द से नम हे उनका दर्द मिटाना सीखें
जिनका कोई नहीं है अपना हम हैं तुम्हारे उनसे कहना
जीवन तो है बस एक सपना यही हमेशा याद है रखना,
नहीं है जिनका कोई सहारा उनका सहारा बनना सीखें।
जिनका जीवन बना है नीरस उस जीवन को सरस बनाएँ
जो बैठे हो चुप-चुप गुमसुम उनको मीठे गीत सुनाऐं
जिनकी नींदे दूर हो गयी हो दिवास्वप्न दिखलाना सीखें।
भूले है कर्तव्य जो अपने उनको कर्म का ज्ञान कराएँं
नहीं जानते पाप-पुण्य जो उनको धर्म की राह बताएँं
भटके हुए है जो इस जग में आओ उन्हें बचाना सीखें।
- वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पेज-28
‘आजाद घूम रहे व्याभिचारी’
अब धर्म आचरण बदल गया ओर बदल गई दुनियादारी।
हम सत्य का मार्ग भूल गए और भूल गए ममता प्यारी।।
नित बढ़ गए लंपट चोर महा चत्थर बढ़ गए है अति जुआरी।
दुःख-दर्द झेल रहीं महिलाएँं,आजाद घूम रहे व्याभिचारी।।
‘सुबह बरसता है कोहरा’
सर्दी है बहुत अधिक ठण्डी न पड़ी है पडे़गी ऐसी कभी,
दिन-रात बरसते हैं ओले,फसलें चैपट हो गयी हैं सभी।
सुबह रोज़ बरसता है कोहरा,देरी से रेलें आवें अभी,
राहत के नाम पे चरणामृत,मिल जाय तो ‘चत्थर’ ओर न भी।।
-‘खुशियाँ ले गई शीत’
शीत लहर अति चल रही,तन-मन कंपित होय।
कपड़े भी कम पड़ गये,ठण्ड न रोके कोय।।
ठण्ड़ न रोके कोय,जलाकर बैठे सिगड़ी।
जंगल सब कट गये,बात सौ प्रतिशत बिगड़ी।
कहत ‘बरैया’ राय, अब कैसे गावें गीत।
ओले खेतों गिरे,खुशी को ले गई शीत।।
क्षणिकाएँ-
1-विश्वास घात-
लोग
विश्वास में लेने हेतु
पहले दिखाते हैं,
ईमानदारी,
फिर-
करके विश्वासघात,
खाते हैं,
उम्र सारी।।
2-शराब-
उसने इतनी पी शराब,
कि-
शराब उसको पी गई।
शिल्प-संगीत,की
जि़न्दगी,
बस
थोड़ी सी जी गई।।
/-डाॅ.राम सहाय बरैया,ग्वालियर (म.प्र.)
पेज-29
कविता-स्वप्न देखना-
हँसी और हँसना मस्तिष्क का एक राज है
हर पल तनाव दूर करने की एक खुराक है।
सुप्त हार्मोन्स रक्त में संचरण होते हैं।
उन्माद भरे मन में जीवन आनंद भरते हैं।।
दोस्त तो अनेक बने पर हृदय नहीं मिले,
राह चलते मीठे बालों से मित्र नहीं मिले गले
हम सफ़र में यात्री निःशुल्क सेवायें देते हैं,
पर मंजि़ल आते ही वे गंतव्य में उतर चल देते हैं।

प्रेम तो दो हृदयों का मीठा अनुभव है।
विचार सब मिलते है जिगर में स्पंदन होता है।
यादें भी उन्हीं प्रेमी युगलों की खूब आती है,
जिन्हें नज़दीक से रसपान करने की चाह होती है।

हे ईश! इतना वरद्हस्त देते रहना जरूर,
आपकी छत्रछाया में पा सकँू सुकून पूर्ण।
थोड़े या बहुत श्रम से स्मरण कर सकूँ तुझे,
ताकि परलोक में चैन की जिऩ्दगी जीने दे मुझे।

झेंपना एक राज है जो सुलझ नहीं पाया,
झूठ बोलकर पकड़ा जाना बंद नहीं हो पाया।
फिर भी नित दैनिक जीवन में अनुपालन होता है
सुर्ख गाल किये चेहरे से बेशर्मी उगलता है।।

सिर्फ़ राह बताने से मैं भटक जाता हँू,
आपके पढ़ाने से मुझे कुछ याद रहता है।
हे ईश आपने भागीदार बनाया सब सीख जाऊँगा,
परमात्मा से अपनी आत्मा को अमर बनाऊँगा।

स्वप्न देखना अचरज भरा अजूबा है
अवचेतन मन को जागृत करने का फलसफा है।
इच्छाओं का अंत कभी आनंद नहीं देता है
कल्पनाओं से जागृति करने का मंसूबा है।।
-शान्ति कुमार जैन ‘प्रियदर्शी’,टीकमगढ़़ (म.प्र.)
30
कविता-‘अगली सदी का भारत’
मुझको एक दिन सपना आया चिठ्ठी लिख दूँ पीढी को।
ढ़ोल के भीतर पोल मिलेगा आने वाली पीढ़ी को।।
वर्तमान की पीढ़ी ये इंजेक्शन की निकली है।
सोयाबीन का दूध पिया है तभी उमर कच्ची है।
सब्जी खाते बिन मौसम की फसलें बंज़र भूमि की,
दूध,दही का नाम नहीं है,दीवानी है गुटखों की।
टी.व्ही. की बस रातंे होती इलू-पीलू की बातंे होती।
दिन के बारह बजे उठेगे,रात को फिर देर से सोएगें,
तो न जाने किस रोज बुढ़ापा आ जाए इस पीढ़ी को।
बौने-बौन बच्चे होगे पूरे दिल के कच्चे होंगे,
पिचके-पिचके गाल मिलेंगे,मिचकी-मिचकी आँखें होगी।
सिर पर बारह बाल मिलेगे,मुँह में दो ही दाँत मिलंेगे।
भट्टी से जैसे निकले हो ऐसे इनके बाल मिलंेगे।
रंग मिलेगा काला पीला आने वाली पीढ़ी को।
देश का नक्शा बदला होगा,भौगोलिक परिवर्तन होगा,
जंगल सारे कटे मिलेंगे,लंबे रेगिस्तान मिलेंगे।
नदियाँ सारी सूखी होंगीं,मलयागिरि की हवा न होगी,
पक्षी सारे गोल रहेंगे,जंगल में चैपाल मिलेगा,
गाएँ भैंसें कट जाएँगी,बकरा-बकरी कट जाएँगे।
मानव आदम खोर बनेगा,रिश्तों में चित्तचोर बनेगा,
देश मिलेगा बूचड़खाना आने वाली पीढ़ी को।
रोबोटों का युग आएँगा,बना बनाया काम मिलेगा,
कसम किसी को नहीं मिलेगा,कोई व्यक्ति नहीं हिलेगा।
सारे मस्तक सो जायेगे पूरे पागल हो जाएँंगे।
रोबोट एक लेना होगा,जिससे घर का काम चलेगा।
खटिया सबकी खड़ी मिलेगी,बिस्तर सबका गोल मिलेगा।
बीबी की भी नहीं जरूरत आने वाली पीढ़ी को,
परखनली में बच्चें होगें आने वाली पीढ़ी को।
- प्रसन्न जैन,टीकमगढ़़ (म.प्र.)
31
कविता-‘यह कैसा गण तंत्र है’
यह कैसा गण-तंत्र है,गण नहीं गन-तंत्र है।
प्रजातंत्र की परिभाषा से दूर हुआ जन-तंत्र है।
जनता के द्वारा जनता की खातिर गणतंत्र।
अब्राहिम लिंकन को भूली दुनिया आजादी का मंत्र,
प्रजातंत्र में नेता करता जनता से षड़यंत्र है।
बाबा साहब ने भारत का संविधान सम्मान दिया,
स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया जीने का वरदान दिया है।
इसीलिए तो भारत माता का हर पुत्र दिया स्वतंत्र है।
जनपथ पर जनता चलती है राजपथों पर चले राज।
नहीं सुराज पले गाँवों में गांधी बाबा भाग चले,
बापू की ताबीज दीरानी राम राज का तंत्र है
जो गरीब है उसको जग में न्याय नहीं मिलता है,
संविधान का पूरा हुआ अध्याय नहीं मिलता है।
दीन-हीन सा ठिठुर रहा गणतंत्र स्वयं परतंत्र है
प्रजातंत्र की परिभाषा से दूर हुआ जन तंत्र है।।

कविता-‘यात्रा का पथिक’
लक्ष्य है संघर्ष भी है यात्रा के पथिक है हम,
चल पड़े जो राह में थकते नहीं, रूकते नहीं है।
राह लंबी हैै मगर ये कारवाँं बनता रहेगा,
हर डगर में, हर कदम पर जि़न्दगी चलती रही है।
कई पड़ावों पर कदम ये डगमगाएँगे नहीं,
साथ आशाएँं हमारा छोड़ सकती है नहीं।
आँधियों-तूफ़ानों में भी जो चलेंगे रह गुजर,
राह पे चलते हुये मुँह मोड़ सकती है नहीं।
ये प्रबल संघर्ष होगा कब डरे संघर्ष से हम।
राह चलते ये अचानक हादसे होते रहे है।।
-डाॅ.जगदीश प्रसाद रावत,टीकमगढ़ (म.प्र.)
32
विशेष परिशिष्ट-आर.एस.शर्मा’
आर.एस.शर्मा
परिचय
नाम    -     आर.एस.शर्मा (राम स्वरूप शर्मा)
जन्म    -12-09-1944 झाँसी (उ.प्र.)   
शिक्षा    -एम.ए.(भूगोल).,बी.एड.,एल.एल.बी,
पिता    -श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी)
माता    -श्रीमती लक्ष्मी बाई शर्मा
पत्नी    -श्रीमती मनोरमा शर्मा (सदस्य उपभोकता फोरम व परिवार परामर्श)
स्वासुर सा-स्व.श्री चतुर्भुज पाठक पूर्व वित्त एवं शिक्षा मंत्री,        सदस्य    -भारतीय संविधान निमात्री समिति व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
पुत्र    - आलोक शर्मा लेक्चरर नवोदय इंदौर
पुत्री    -अल्का एवं अर्पणा पुत्रवधु-विन्दु शर्मा लेक्चरर नवोदय इंदौर
साहित्य लेखन-    आलेख,निबंध,यात्रा संस्मरण व कविता आदि,
अभिरुचियाँ-घूमना,पर्यटन,व्यायाम,ध्यान-योग,चिंतन,मनन,कृषि,बागवानी
विशेष रूचि- सभी धमों की तीर्थ यात्राएँ करना तथा भारत भ्रमण।
शासकीय सेवा-फूड इंस्पेक्टर से फूड आफीसर तक 39 वर्ष तक
प्रकाशन-1-सर्वोदय आश्रम टीकमगढ़-सिहंावलोकन(संपादन) (2006)
       2- स्व.चतुर्भज पाठक स्मृति ग्रंथ (संपादन) (2009)
       3- भारत दर्शन (2011)
       4- आधी आबादी (नारी की दशा व दिशा) (2013)
वर्तमान में 1-अध्यक्ष-सर्वोदय आश्रम(सी.पी.एस.ट्रस्ट)टीकमगढ़(म.प्र.)
      2-उपाध्यक्ष-म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,टीकमगढ़ (म.प्र.)
      3-संरक्षक-म.प्र.लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ (म.प्र.)
      4-सदस्य मानवाधिकार आयोग समिति,टीकमगढ़
      5-सदस्य-जनजागरण दल,टीकमगढ़
      6-सदस्य-राज्य स्तरीय परिवार परामर्श समिति म.प्र
पता- ताल दरवाजा,टीकमगढ़ (म.प्र.)पिन-472001,
मोबाइल- 9754666264, दूरभाष-07683-242165
33
1-कविता-बुन्देली वैभव-
इत जुमना,उत नर्मदा,
चम्बल टौंस कछार।
दो लाख मीलन फैले
सुंदर सुघड़ पठार।
पचास जिलन और
छैः करोड लोगन के संसार
वन सम्पदा और पुरा-सम्पदा
पन्ना,हीरन के भण्डार।
छत्रसाल-हरदौल के
त्याग,शौर्य बलिदान
ओरछा,मैहर,चित्रकूट के
पावन तीर्थ मुकाम।
तुलसी,केशव मैथली
साहित्य के ऊँचे सोपान
ध्यानचन्द और रूप सिंह
विश्व हाकी परवान,
किले,गढ़ी और खजुराहो के
मंदिर मन-भावन
चरण पादुका और सातार
शहीदों के स्थल पावन।
भेड़ाघाट,पचमढ़ी और
साँची के स्तूप,
ताल,तलैया,गाँव-गाँव है कूप।
-34
2-कविता-‘लोकतंत्र’
पैसठ बर्षो के लोकतंत्र में,
जन सेवा का मंत्र कहाँ है ?
नेता के चिंतन में आचार कहाँ है ?
शिक्षालय की शिक्षा में संस्कार कहाँ है ?

राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान पस्त हो गए
काले धन के वैभव में सब मस्त हो गए।
नेताओं के भ्रष्टाचार से लोकतंत्र में सेंध लग गई,
संतों के दुराचार से भक्ति भावना ध्वस्त हो गई।

गगन चूमते ऊँचे भवनों में,
टूटे-बिखरे परिवार पड़े हैं।
टी.व्ही.,टेलीफोनो की ऊँची आवाजों में
पति-पत्नी चुपचाप खड़े हैं।

भूमण्डली करण के इस युग में,
सादा जीवन उच्च विचारों को स्थान नहीं है,
आधुनिकता की चकाचैंध में
परम्परा का मान नहीं है
लोकतंत्र के रखवालों का ईमान कहाँ है ?

साभार समाचार-पत्र प्राप्ति स्वीकार-
74-‘निर्दलीय’(सा..पत्र) कार्य.संपादक-प्रिंस अभिशेख अज्ञानी,भोपाल,(म.प्र.)
75-‘अदबीमाला’ (मा.पत्र),संपादक-कशमीरी लाल चावला,मुक्तसर (पंजाब)
76-‘हिन्दी सेवा’ (मा.पत्र)-संपादक-एन.गुरुमूर्ति,चेन्नई,(तामिलनाडू)
77-‘स्वतंत्र राईटर’ (मा.पत्र) संपादक-लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र,दिल्ली
78-‘श्रमजीवी पत्रकार बुलेटिन’ (मा.पत्र) संपादक-शलभ भदौरिया,भोपाल,(म.प्र).
79-‘हिन्द क्रांति’ (सा.पत्र) संपादक-सतेन्द्र सिंह यादव,गाजियाबाद (उ.प्र.)्र.
80-‘प्रेमवाणी’ (सा..पत्र) संपादक-सतीश कुमार वर्मा,सहारनपुर,(उ.प्र.)
81-‘सत्य चक्र’ (मा.पत्र)संपादक-ललित बिन्दल,गाजियाबाद(उ.प्र)
36
‘श्री पाठक जी को
   श्रद्धांजलि’
न दबेगें, न दबाएँगे के
उद्घोषक,
सत्य,अहिंसा के पोषक
नई पीढ़ी के दिग्दर्शक
हम सबका, तुम्हें प्रणाम।
शासकीय सेवा के त्यागी
स्वाधीनता संग्राम के भागी,
हरिजन सेवा और
जाति प्रथा उन्मूलन के प्रतयामी,
हम सबका तुम्हें सलाम।
टीकमगढ़ सीमा से निष्कासन,
जाति,बिरादरी का बिच्छेदन,
सहते रहे बल्देवगढ़ किले की पीड़ा
किन्तु नहीं छोड़ा स्वतंत्रता का बीड़ा।
भारतीय संविधान निर्मात्री सदस्य
विन्ध्य सरकार के
शिक्षा और वित्त मे मंत्री
सर्वोदय भूदान
और जिला दान के अगुआ,
बुन्देलखण्ड दस्यु समर्पण के पहेरुवा
तुम्हें शत शत् नमन
तालाब में पुत्र की मृत्यु पर
दोस्तांे के विरुद्ध रिपोर्ट न पार
क्या रिपोर्ट से पुत्र आ जाएगा
यह महामानव होने की बात का
कालान्तर में उसी महानायक का
महा प्रयाण भी इसी तालाब में हुआ।
ऐसे महापुरुष को शत् शत् नमन
‘भ्रष्टाचार’
दुनिया में सृष्टि के आरंभ से
गरीबों और अमीरों का
अंतर बहुत बड़ा है।
तभी से लेनदेन का
चलन चल पड़ा है।
चल चालाकों ने
मर्यादा को लांघा है
अपने ख़ातिर कानूनों को
तोड़ा और मरोड़ा है।
भैंट,उपहार,नजराना,
तो समझ में आता है।
गला पकढ़ जबराना तो
भ्रष्टाचार कहलाता है।
जो जिस लायक है
वह वहाँ नहीं है।
दुःख तो दस बात का है कि
जुगाड़ लोगों के जहाँ
नालायक बैठा है।
चोर पकड़ने की बात
कहें तो किससे?
जिसे पकढ़ना है
उसी का चोरी का ठेका है।
भैंट,उपहार,नजराना,
तो समझ में आता है।
गला पकड़ जबराना तो
भ्रष्टाचार कहलाता है।।
37
पं. श्री बनारसी दास चतुर्वेदी को-
        श्रद्धा-सुमन
राजतंत्र को प्रजातंत्र का पाठ पठाया,
दीनो-हीनों को रहना सिखलाया।
दोस्तों को सहलाया
दादा।
तुम्हें प्रणाम!
पढ़े लिखांे के नींव के पत्थर
हो तुम,
राजकुमारों के हृदय की अंतस,
चेतना हो तुम
सर्वप्रथम उत्तरदायी शासन देने
को चेताया।
प्रजातंत्र के पालक,
लोकतंत्र के साधक,
तुम्हें प्रणाम।
अन्तोदय के बल और
सर्वोदय के संबल
हो तुम।
प्रवासियों के हितचिंतक
पत्रकारिता के थे अग्रज।
शिक्षण-प्रशिक्षण के दाता,
कुण्डेश्वर के कण-कण में,
रमे रहे प्रेरक बनकर
दादा,
तुम्हें नमन,
श्रद्धा सुमन,
श्रद्धा सुमन,।।
38
आलेख-‘उपभोक्ता संरक्षण क्या,क्यों और कैसे’’
    15 मार्च ‘विश्व उपभोक्ता संरक्षण दिवस’ तथा 24 दिसम्बर को‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ प्रतिवर्ष मनाया जाता है। 24 दिसम्बर सन् 1986 से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रभावशाली है जो सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है। यह कानून निजी,सार्वजनिक तथा सहकारी सभी क्षेत्रों पर लागू है जो व्यक्ति बाजार से माल खरीदता है या किसी भी प्रकार की सेवा भाडे पर (किराया देकर या शुल्क प्रदाय कर) प्राप्त करता है। माल का मूल्य अदा करता है या आंशिक कीमत देता है या उधार खरीदता है वह उपभोक्ता कहलाता है।
    सेवा से तात्पर्य ऐसी सभी सेवाओं से है जो मूल्य लेकर प्रयोगकर्ता को या उपभोगकर्ता को उपलब्ध कराई जाती है जैसे बैंक, बीमा, परिवहन, विद्युत,भोेजन (होटल),निवास(बिल्डर्स या ठेकेदार के विरुद्ध),मनोरंजन(टी.व्ही.,रेंडियों),आमोद-प्रमोद,समाचार पत्र,तार,व दूरभाष, रेल, चिकित्सा सेवाएँं(डाॅक्टर के विरुद्ध),शिक्षण शुल्क अदा कर शिक्षण संस्था के विद्यार्थी भी उपभोक्ता की श्रैणी में आते है। यहाँ ज्ञातव्य है कि जो वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करता है परन्तु उसका मूल्य नहीं चुकाता है या व्यवसायिक उपयोग की दृष्टि से वस्तु या सेवा खरीदता है वह उपभोक्ता नहीं है। संरक्षण से आशय है कि उक्त माल या सेवा की खरीद फरोख्त में व्यापारी द्वारा धोखा देना, ठगी, करना, मुनाफा खोरी, मिलावट या कम नाप-तौल करना,नकली माल देना आदि गलत
गतिविधियों से उपभोक्ताओं को बचाना,संरक्षण देना तथा दुकानदार से क्षति-र्पूिर्त कराना है।
        इस अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए कई कानून थे,किंतु वह उपभोक्ताओं को संरक्षण देने में या उनके हितों की रक्षा करने में कारगार साबित होते नहीं दिखते थे, जैसे अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम वस्तु अधिनियम 1955 के अंतगर्त विभिन्न खाद्यान्न तथा मिलावट
संबंधी नियंत्रण आदेश,नापतौल,अधिनियम,पी.एफ.ए.-खाद्य अपमिश्रण को रोकने संबंधी आदेश, चोर बाजारी निवारण आदेश,ड्रग्स एण्ड काॅस्मेटिक एक्ट,ड्रग्स एण्ड मैजिक रेमेडीज एक्ट तथा फ्रूट प्रोडक्टस एक्ट आदि। जब ये सब अधिनियम थे, तो उक्त उपभोक्ता संरक्षण की क्यों आवश्कता महसूस हुई। पूर्व में उद्योग व्यापार जगत द्वारा उपभोक्ताओं साथ कुछ इस तरह से दुव्र्यवहार किया जाने लगा जो असहनीय महसूस हुआ जिसका सटीक प्रमाण है बे रसीदें जिन पर लिखा होता है कि बिका हुआ माल वापिस नहीं लिया जावेगा।
40
आलेख-‘बुन्देलखण्ड प्रान्त और बुन्देली भाषा का उत्थान     एक महती आवश्यकता-’’
        भौगोलिक दृष्टि से बुन्देलखण्ड 20000’’-26030’’ उत्तरी अक्षांश व 780,10’-81030’ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है यह प्राकृतिक सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से चार नदियों यमुना,नर्मदा,चम्बल,टौंस से घिरा हुआ भू भाग है जो भारत का हृदय स्थल कहलाता है यह पठारी,पहाड़ी होने तथा सिंचाई के अभाव से कृषि और व्यापार में काफी पिछड़ा रहा। यहाँ के लोग आर्थिक रूप से सक्षम और सशक्त नहीं हो पाए। सामन्ती शोषण और राजनैतिक दोहन के बीच यहाँ का किसान मजदूर पिसता चला आ रहा है। दुर्भाग्य है कि हाड़ तोड़ मेहनत के बावजूद भी उसे पेटभर भोजन नहीं मिलता और अस्मिता भी सुरक्षित नहीं रह पाती। इसीलिए उसे पलायन करना और चैतुआ के रूप में अन्यत्र जाकर अपना पेट पालना पड़ता है।
        स्वतंत्रता के बाद दो राज्यों में फँसा यह भूभाग अब जागा है चेता है,परिस्थितियाँ बदली हैं और बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की माँग उठी है जो आवश्यक है। यह क्षेत्र 1.84 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों के लगभग 50 जिले तथा 6 करोड़ की आबादी समाहित है। पृथक बुन्देलखण्ड की माँग अंग्रेजी शासन काल 1942 में भी उठाई गई थी। अब नागरिक सुरक्षा,मूलभूत सुविधा आदि बदतर स्थिति में है। यहाँ के राजनैतिक प्रतिनिधि कुछ ज्ञात-अज्ञात कारणों से क्षेत्र के लिए अच्छी योजनाएँ ,रेल्वे लाइन,सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य तथा बेहतर शिक्षा की माँंग रखने में हिचकते हैं। इस प्रकार क्षेत्र के विकास में राजनैतिक इच्छा शक्ति और जन-आन्दोलन का अभाव सबसे बड़े कारण प्रतीत होते हैं।
        इसी प्रकार बुन्देली भाषा के विकास और उन्नयन का मार्ग भी अवरुद्ध है। बुन्देली भाषा भाषी क्षेत्र पूरे उक्त 50 जिले में कमोवेश रूप से फैला हुआ है। क्षेत्र अंतर बोलने,उच्चारण और स्वर लहर का रहता है। एक कहावत भी है कोस- कोस पे पानी बदले चार कोस में बानी। कुछ क्षेत्रीय बोलियों को हम बुन्देली की उपबोली कह सकते है जैसे बनाफरी,पवारी,राठैरी,खटोला,भदावरी पर भाषायी तत्वों की दृष्टि से सब बुन्देली भाषा है। अतः बुन्देली भाषा को आठवीं अनुसूची मेे स्थान दिलाकर भाषा का दर्जा दिलाया जाना आवश्यक है बुन्देलखण्ड प्रान्त और बुन्देली भाषा के उत्थान के कार्य प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन,जनचेतना और राजनैतिक इच्छाशक्ति से ही संभव है अतः हम सबको अपनी‘-अपनी भूमिका के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा।
                    - आर.एस.शर्मा, टीकमगढ़ (म.प्र)
41
आलेख-‘हिन्दु बाहुल्य हिन्दुस्तान में हिन्दी उपेक्षित’’
    एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों के हिन्दुस्तान में नब्बे करोड़ लोग हिन्दी बोलते है। 66 वर्ष हो चुके स्वतंत्रता प्राप्ति के,किन्तु ब  तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा की प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त करा सके। जबकि राष्ट्रीयगान,राष्ट्रीय ध्वज,राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय पशु विधिवत घोषित है।
    गाँव से कस्बे की और कस्बे से नगर,नगर से महानगर तथा महानगर से विदेश की ओर प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है बड़े बदलाव की जरूरत है हमें भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी। सबसे बड़ी बिड़म्बना है कि मातृभाषा भाषी भी मातृभाषा के पक्ष में नहीं दिखते है। यह सब मातृभाषा के प्रयोग को नेपथ्य में धकेल रहे है और हिन्दी के राष्ट्रीय भाषा होने के मार्ग को अवरूद्ध किये है। बड़े शहरों में ही नहीं छोटे गाँव,कस्बों में भी अंग्रेजी स्कूल कुकरमुत्तों की तरह फैलते जा रहे है। धार झाबुआ के दूरस्थ अंचलों के स्कूलों की टाट् पट्टी भी हिन्दी से छीनी जा रही है। अनुमान,अप्रेक्षित शुद्ध व्यवसायिक लक्ष्य लेकर स्कूलों का मकड़जाल फैला है, शिक्षा के माध्यम में अंगे्रजी का निरन्तर विस्तार और हिन्दी का निरंतर संकुचन शिक्षा जगत का एक भयावह सच है। आज मर्यादा, संयम, अनुशासन, नैतिकता,पोंगा पंथी,पिछड़ापन समझा जाने लगा है।
        यह कहकर दो बड़े झूठ बोले जाते है-अंग्रेजी पढ़ो लेकिन अंग्रेजियत से दूर रहो तथा हिन्दी में सामर्थ नहीं कि उच्च और टेक्नीकल शिक्षा का माध्यम बनाया जाये।
        मातृभाषा से राष्ट्र की सामाजिकता और संस्कृति का बोध होता है। इज्राइल ने 1000 वर्षो के संघर्ष  के बाद अपनी मातृभाषा हिबू्र की राष्ट्रभाषा के रुप में लागू किया। तुर्की ने स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद से ही अपनी भाषा में काम काज शुरू कर दिया था। भारत के कई महापुरूषों ने अपनी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्रारम्भ की है जगदीश चन्द्र बसु,ए.पी.जे.अब्दुल कलाम,महात्मा गांधी,तिलक,राजेन्द्र प्रसाद,सरदार पटेल आदि प्रमुख है। कुछ आँकड़ों से पता चलता है कि आई ए एस सर्विस परीक्षार्थियों ने हिन्दी माध्यम से सफलता प्राप्त की है। आँकडों में में उल्लेखनीय प्रगति हुई है -
हिन्दी माध्यम में वर्ष 2006 में 3306, वर्ष-2007 में 3751 तथा वर्ष 2008 में 5117 है।
     हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है म.प्र. में हिन्दी विश्वविद्यालय प्रारम्भ हो चुका है दक्षिण तथा पूर्वांचल आदि प्रदेशों में हिन्दी पढ़ने वालों की संख्या दिनोदिन गुणोत्तर बढ़ रही है।
42
आलेख-        ‘जागो ग्राहक जागो’’
        ग्राहक जागो और देखो! बाँट तराजू में बिना सील के कोई कारस्तानी कर चुंबक आदि का उपयोग तो नहीं किया गया है। पेट्रोल-डीजल तथा आटो रिक्शा के मीटर शून्य पर है या नहीं। गैस सिलेण्डर की सील,वस्तुओं में आई.एस.आई. एगमार्क तथा सोने के आभूषणों में हाॅलमार्क देखे। दवाओं की एक्सपाइरी डेट देखकर ही दवा ले। वस्तु प्रतिष्ठित कंपनी की खरीदें तथा रसीद अवश्य ले। बाज़ार में अपने आप को अकेला न समझे,पूरा उपभोक्ता समुदाय आपके साथ है। जनभावना आपके साथ है आप अन्याय बरदास्त न करे।
        वैश्वीकरण के इस युग में हर व्यक्ति कहीं न कहीं किसी रूप में ग्राहक(उपभोक्ता) है जो भी बाज़ार से काई वस्तु खरीदता है या उधार लेता है या किसी प्रकार की सेवा भाड़े पर लेता है और उसकी कीमत या किराया देता ळे वह उपभोक्ता ग्राहक कहलाता हैं जो व्यवायिक उपभोग के लिए सभी सेवाओं से है जो मूल्य देकर उपभोगकर्ता को उपलब्ध करायी जाती है जैसे-बैंक,बीमा, विद्युत, परिवहन-रेल-बस, भोजन (होटल),निवास (बिल्डर्स या ठेकेदार),मनोरंजन (टी.व्ही.रेडियों),तार व दूरभाष,चिकित्सा सेवायें (डाॅक्टर्स के विरूद्ध),रूकूल कालेज जहाँ शुल्क जाम कर शिक्षा दी जाये कोचिंग सेन्टर्स आदि।
        ग्राहकों को प्रायः निम्न तरीकों से ठगा जाता है -1-दुकान द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक कीमत लेना। 2- कम बजट या माप की वस्तु देना। 3- नकली,मिलावटी या निचले स्तर की सामग्री देना। 4-सेवाओं के क्षेत्र में पूरी कीमत लेकर अधूरी सेवा देना या घटिया स्तर की पूर्ति करना जैसे-जीवन बीमा निगम के दावे की राशि भुगतान में परेशान करना,अस्पताल में इलाज के दौरा पुकसान की भरपाई न करना,बिल्र्डस द्वारा पूरी राशि प्राप्त करने के बाद भी बिल्डिंग (मकान) उपलब्ध न कराना आदि, सेवा त्रुटियाँं हैं। जिनके द्वारा उपभोक्ता को ठगा जाता है। उपरोक्त ठगी से कैसे बचा जाये ? इस प्रकार की धोखाधड़ी एवं ठगों से बचने के लिए उपभोक्ता सरंक्षण कानून में उपभोक्ताओ को निम्न लिखित अधिकार प्राप्त है उनका सज होकर उपयोग करे।
1- सुरक्षा का अधिकार, 2-जानकारी प्राप्त करने का अधिकार, 3- वस्तु के चयन करने का अधिकार,,4-सुनवाई का अधिकार, 5-क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार,6-शिक्षा का अधिकार इन अधिकारों का उपयोग करते हुये आप दुकानदार के विरूद्ध उपभोक्ता अदालत में शिकायत दजै करा सकते हैं जिसमें वकील की जरूरत नही हैं।
43
सादे कागज पर घटना का पूण विवरण लिखकर खरीदी का बिल सलंग्न कर निर्धारित देय न्याय शुल्क का ड्राफ्ट लगाकर जिला उपभोक्ता फोरम में प्रस्तुत कर सकते है,जिसकी अपील राज्यीय एवं राज्य की अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालतो में की जाती है।
उदारणार्थ कुछ प्रकरण संक्षिप्त प्रस्तुत है जिसमें उपभोक्ता फोरम अदालतों ने क्षतिपूर्ति करायी -1- टीकमगढ़ उपभोक्ता फोरम ने हाल ही में कुण्डेश्वर के एक प्रकरण में किसान को इस वाद पर क्षतिपूर्ति और वाद न्याय दिलाया कि उसने बीज निगम से सोयावीन बीज लेकर खेतो में बोया,जो बिलकुल भी अंकुरित नहीं हुआ।
2- दक्षिण भारत में एक रेल यात्रा के दौरान रेल्वे कैअरिंग ने एक मजदूर को दही चावल के पैक लंच के साथ पीने के लिए पानी नहीं दिया,जबकि अन्य यात्रियों को थाली के भोजन के साथ पोली पैक में पानी दिया गया। उस मजदूर ने पानी मांगा भी तो भी नहीं दिया गया। चैन्नई पहँुचकर उस मजदूर ने एक एन.जी.ओ. के माध्मय से जिला फोरम में रेल्वे द्वारा सेवा में कमी की शिकायत कर दी। फोरम ने रेल्वे को चेतावनी दी ओर अब दही चावल पैक लंच के साथ पोली पैक में पानी दिया जाने लगा। यह है उस मामूली मजदूर की जागृति और अधिकारों के प्रति सजकता।
3- लुधियाना के एक प्रकरण में एक ठेकेदार द्वारा रेल्वे स्टेशन पर पार्किंग का ठेका लिया जाकर उसके द्वारा स्कूटर की पार्कि्रंग को 50 पैसे की जगह 2.50 रू. (ढाई रुपए) प्रति स्कूटर बसूला जा रहा था, एन.जी.ओ. के माध्यम से कुछ लोगो ने जिला उपभोक्ता फोरम में बाद दायर किया। फोरम ने ठैकेदार पर 500 रुपए जुमा्रना किया किन्तु शिकायतकर्ता को फटकार लगाई की ढाई-ढाई रुपए के छोटै-छोटे प्रकरणों में र्कोअ का समय बर्बाद करते हो।
        इस पर स्टेट कमीशन में अपील हेतु गया,अपील मंजूर हो गई,स्टेट कमीशन ने रेल्वे और ठैकदार दोनो पर रुपए 15000 का जुर्माना तथा 2000 रुपए वाद व्यय का निर्णय इस आधार पर लिया कि ठेकेदार और रेल्वे की मिलीभगत से प्रतिदिन 300 स्कूटरवालों से ठेकेदार अधिक पैसा लेता था। अतः जागो ग्राहक जागो।
                - आर.एस.शर्मा, टीकमगढ़ (म.प्र)
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व्यंग्य-‘दशहरा आँखों देखा’
    आज दशहरा हैं और हमारा बच्चा दशहरा (रावण) देखने के लिए लालायित था,उसे रावण दिखाने ले गए। वहाँ देखा तो 30-40 पुलिस वाले रावण के पुतले की रक्षा कर रहे थे। बालक ने हमसे पूछा- पापा रावण तो बुरा होता है फिर रावण की रक्षा में पुलिस क्यों लगी है? हमने कहा-बेटा,पुलिस रावण की सेफ्टी के लिए है, कहीं कोई आसामाजिक तत्व रावण को नुकसान नहीं पहँुचा दें।
    इतने में रावण को बनाने वाला शख्स हमारे सामने आ गया किसी ने उससे पूछा-भैया इस साल का रावण तो बहुत छोटा बनाया है?
वो बोला-इसे बनाने में ही हम दस आदमी तीन दिनों से लगातार मेहनत कर रहे हैं और इसे बनाने में लगभग पचास हजार रूपए का खर्चा आया है। वो बड़े गर्व से बता रहा था एक रावण को अपने पैरों पर खड़ा करने में कितना मानव श्रम लगा और कितनी लागत आई। बालक पूछ बैठा-पापा रावण को बनाने में इतना खर्चा क्यों किया?
    मैं कुछ नहीं बोल सका। इतने में राम,लक्ष्मण हाथ में धनुष बाण लिए प्रांगण में आ गए, राम ने धनुष बाण निकाला और रावण से बोले-तेरा क्या होगा रावण तुझे तो मैं जलाकर राख कर दँूंगा।
    अचानक रावण भी बोल उठा-हा,हा,हा जाओ, पहले उस आदमी को जलाकर आओ जिसने माँ-बहन की इज़्ज़त पे हाथ डाला,जाओ पहले उस आदमी को जलाकर आओ जिसने गरीबों का खून चूसा,जाओ पहले उस आदमी को जलाकर आओ जिसने खूब भ्रष्टाचार किया, उसके बाद तुम जैसे चाहो वैसे मुझे जला सकते हो,मार सकते हो।
    जिसने भ्रष्टाचार किया वो तो हममें से एक है जिसने गरीबों का खून चूसा, वो भी हममे से एक है और जिसने माँ-बहन की इज़्ज़त पर गलत नज़र डाली वो तो हमारे गुरु रहे है वो भी हममे से एक है, पर रावण, तुम हममें से एक नहीं हो, तुम्हें तो मरना ही होगा।
    रावण बोला-अगर तुम इन लोगों को पहले जलाकर नहीं आते तो मैं सभी लोगों को शाप देता हूँ कि हर वर्ष मुझे बनाना होगा और जबरदस्ती मुझे जलाया जाएगा।
राम ने आग लगा बाण छोड़ा और रावण में आग लग गयी रावण धमाके की आवाज के साथ जल उठा। जोर-जोर से धमाके की आवाज़ आने लगी।
    तभी बेटा बोला-पापा रावण कितनी जोर -जोर से हँस रहा है।
             -विजय कुमार मेहरा,होशंगाबाद (म.प्र.)
45
कविता- आज का आदमी
आदमी आदमी न रहा है,
गुम हुआ आदमी आदमी का।
दर ब दर आज विश्वास भटका
घात करना हुआ आदमी का।
अपने घर को तो करता है रोशन
आशियाना जलाता किसी का।
आए पैसा कहीं से भी कैसा
यही मकसद हुआ जि़न्दगी का।
शाम को जाम सुबह में पूजा
ढोंग करने लगा बंदगी का।
झूँठ के आज होते पौवारा,
साँच लगने लगा आज फीका।
संत नेता हुए बहरूपिए
नहीं विश्वास है अब किसी का।
खेंगर करते रहो सब भलाई
यही मकसद रहे जि़न्दगी का।।
कविता-गरेवान में झाँ आदमी-
देखते क्यों इधर या उधर तुम,
झाँककर देखिए अपने अंदर।
आपको फिर पता चल सकेगा,
आप इंसा है या फिर हैं बन्दर।
लूटकर धन इकट्ठा किया था,
खाली हाथों गया वो सिकन्दर।
गर्व करता है तू क्यों सरोवर,
तुझसे भी इक बड़ा है समन्दर।
जीत होती है दिल की ही दिल पर
काम आता नहीं कोई खंज़र।
ना दवाए दबेगी ये प्रतिभा,
जब मुकद्दर हो जिसका सिकन्दर। नेकी कर लो बनो यार इंसान,
अर्ज करता है खैंगर राजेन्दर।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह खेंगर’,दतिया (म.प्र.)

नव-दोहे
छपकलियों ने ले लिया,है जबसे अवकाश।
कीट-पतंगे बढ़ गए,दीवारों के पास।।
कोयल सयानी ढूँढ़ती,है कौए की नीड़।
छल करने के बाद भी, है बसंत की रीढ़।।
सरीसृपो की भीड़ में,सर्प भी हैं कई नेक।
पर नागों की वजह से,मरते नित्य अनेक।।
गिद्ध प्रकृति करते स्वच्छ,पर उनका उपहास।
तोते जबकि प्रशंसित,कर बागों का नाश।।
सड़कों पर चलता मियाँ,मुहँ पर पट्टी बाँध।
फैली भ्रष्टाचार की,चारों ओर संडांध।।
रामगोपाल रैकवार‘कँवल’,टीकमगढ़ (म.प्र.)
-46
गीत-धन्य धरा बुन्देलखण्ड की
धन्य धरा बुन्देलखण्ड की,डग-डग पर है पानी।
शीतल मंद सुगंध पवन है,फसल होत मनमानी।।
सीधे-साँचे धर्म परायण,भोले है नरनारी।
साँस-साँस में श्रद्धा बिखरी,जानत है संसारी।।
भाजी रोटी,मुरका,डुबरी,बेर,मकोरा खानी।
धन्य धरा बुन्देलखण्ड की,डग-डग पर है पानी।।
पढ़वौ लिखबौं कतऊँ न जानै, हैं बातन के भन्ना।
ई चुनाव ने बात बिगारी,फूटे नानी नन्ना।।
नव जमानौ जब सें आ गओ,बदल गई जि़न्दगानी।
चप्पा-चप्पा खेती हो रई,भये टेक्टर धर-धर।
टी.व्ही. कम्प्यूटर भय घर-घर,मोटर साईकिल घर-घर।।
छोड़ गाँव सहरन में आ गये,महल बने लासानी।
धन्य धरा बुन्देलखण्ड की,डग-डग पर है पानी।।
जिन गाँव में मेर हतो तो,उनमें भई बरबादी।
घर-घर भई शराब प्यारी,माँगी हो गई शादी।।
नारी शोषण भ्रूण नाश में,वृद्धि भई मनमानी।
धन्य धरा बुन्देलखण्ड की,डग-डग पर है पानी।।
/ परमेश्वरीदास तिवारी’,टीकमगढ़(म.प्र.)
हायकू
हर कवि को,
जन्म लेना होता है।
भावनाओं से।।

बाल विवाह,
सख्त कानून से ही।
रोका जा सके।।

उनके लिए,
खुली किताब हँू मंै।
कुछ लम्हों की।।

जगमगाते,
भारत के त्यौहार।
हर प्रांत में।।
देवेन्द्र कुमार अहिरवार,दिगौड़ा,टीकमगढ़(म.प्र.)
-47
गीत- अरे देश के नौजवानो
अरे देश के नौजवानों,बनते तुम क्यों कमज़ोर।
तुम्हारी असीम शक्ति के आगे,चल न पाए किसी का जोर।।
अगर तुम ठान लो तो,छक्के दुश्मन के छुड़ा सकते।
अच्छे हिम्मतवालों को भी लोहे के चने चबबा सकते।।
दहल जाएगा पहलवान भी ,सुनके तुम्हारा शोर।
तुम्हारी असीम शक्ति के आगे,चल न पाए किसी का जोर।।
उठो और आगे बढ़ो,भारत माता के वीर सपूत।
रुको नहीं सबको दिखलादो,तुम्हारे अंदर शक्ति अकूत।
जो कोई आए तुम्हारे आगे,उसको पटक देना झकझोर।।
तुम्हारी असीम शक्ति के आगे,चल न पाए किसी का जोर।।
वीर बहादुर हो धरा के,यह धरती तुम्हें पुकार रही।
स्वागत करने होकर हर्षित,तुमको आज निहार रही।।
चमत्कार दिखलादो ऐसा,कण-कण हो जाए भाव विभोर।
तुम्हारी असीम शक्ति के आगे,चल न पाए किसी का जोर।।
वीरों से शोभित है धरती,गाथा वीरों की गाते हैं।
पूजा होती है वीरों की,कायर दुत्कारे जाते हैं।।
भाग्य भरोसे मत हो बेताल,कहला लेना नहिं रणछोर।
तुम्हारी असीम शक्ति के आगे,चल न पाए किसी का जोर।।
दीनदयाल तिवारी ‘बेताल’,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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               रजनीगंधा’ (हिन्दी हाइकु संग्रह)
टीकमगढ़ के साहित्यकार राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ का सन् 2008 में लिखा हुआ। सन् 2011 में 2100रू. का ‘स्व.पं.राधिका प्रसाद पाठक हाइकु सम्मान 2011’ प्राप्त, बहुचर्चित हिन्दी हाइकु संग्रह’ ‘रजनीगंधा’ 64 पेज में 250 हाइकुओं का मज़ा मात्र 35रु.का एम.ओ.संपादक के पते पर भेजकर प्राप्त करें।
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-पेज-48
नव गीत

हमने दिया जो रख दिया नभ की मुंडेर पर,
वो चाँद बनकर दिख गया और ईद हो गई।
रूठे हुये थे कल तलक और बोलते न थे,
आपस में सुलह हो गई,तो ईद हो गई।
वो कत्ल कर रहे हैं, सिर्फ़ बेगुनाहों का,
गर मुहब्बत के बीज बो दिए तो ईद हो गई।
भूखा था कई दिन से वो बेहाल हो गया,
हमने खिलादी रोटियाँ तो ईद हो गई।
यह प्रेम की बहार है, दिन दिल मिलन का है,
वो हँस गये यदि आज तो बस ईद हो गई।
मजहब नहीं सिखाता है,आपस में बैर रख,
सबको गले लगा लिया तो ईद हो गई।।
नव गीत

मैं तुम्हें देख लूँ तुम मुझे देख लो,
दर्द के अश्रु फिर यूंँ छलक जाएँंगे।
रोते-रोते न तुम मुस्कराया करो,
फूल की पाँखुरी से महक जाएँगें।
न मैं अमावस बनँू और न तुम पावस बनो,
चाँद पूनम का बन हम चमक जाएँंगे।
प्रीति की आँख में झील सी आँख में,
हम उतरते गए वो उतर जाएँंगे।
आँख की कोर से,तुम न देखो मुझे,
पागलों की तरह हम बिखर जाएँेगे।
मंदिरों में बजी घंटियों की तरह,
साधना के दिए यूँ ही जल जाएँगे।।
- हरेन्द्र पाल सिंह,टीकमगढ़ (म.प्र.)
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‘अर्चना’ (कविता संग्रह)टीकमगढ़ के युवा कवि राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के  छात्र जीवन (सन् 1997) में लिखा कविता संग्रह ‘अर्चना’ 32 पेज में 23 विविध रंगों में रचित बाल कविताएँ संपादक के नाम से मात्र 25 रु.का एम.ओ.भेजकर प्राप्त करें।
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49
 

ग़ज़ल
होटों पे मुहब्बत हो और सीने में दगा हो,
इस दौर पें इंसान का फिर कैसे भला हो।
औरत का है बस एक यही कीमती ज़बर,
चेहरे पे हो मासूमियत,आँखों में हया हो।
तूने मुझे हर-हर क़दम ज़ख्मों से नवाजा,
मैं फिर भी दुआ दूँंगी जा तेरा भला हो।
दुनिया ने किसी का न दिया वक़्ते फना साथ
साथी तो वही है जो हमराह चला हो।
करती हँू दुआ रब से यही सुब्हो शाम मैं,
हर सिम्त ज़माने में ‘रुख’ तस्वीरे वफ़ा हो।।
विस्फोट
ये विस्फोट धमाके हैं, पटाखे नहीं हैं,
ये ढ़ेर लाशों के हैं कचरे के नहीं है।
यूँ सो गई मानवता किसके आगोश में,
मानव तो मानव है मगर होश नहीं है।
लिखते-लिखते रुक गई न जोश नहीं है।
क्या कर सकोगे हासिल अय इंसानी दरिन्दों,
क्या तुम बच सकोगे भूल रहे हो तुम,
कि तुम्हें मौत नहीं है।
ये तुम्हारे पाप का सागर है रेत का ढ़ेर नहीं है
जब-जब बेकसूरों की आहें जागेगी,
मौत भी तुमसे पनाह माँगेगी।
जब देगें तुम्हें शाप नन्हें मुन्ने अनाथ,
सिंदूर पोछती ललनाएँ,सूनी कोख लिए माताएँ
तब तुम्हें किसी लोक में न मिल सकेगा चैन,
न धरती तुम्हें अपनाएगी न अंबर देगा छाँव,
न अग्नि तुम्हें जलाएगी न समीर देगा साथ,
जब तुम्हारे चिथड़े होगे सहस्त्र
न करेंगे पशु पक्षी उनका भक्षण
तब तुम हज़ारों योनियों में जन्मने के बाद भी
न हो सकोगे कभी पंचतत्व में विलीन।।
डाॅ. रुखसाना सिद्दीकी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
50
 
कविता-इन्हें प्रणाम करो’
इन्हें प्रणाम करो,ये बड़े महान हैं,
बात-बात में रूप बदलते,
हिन्दू-मुस्लिम में लड़ाई कराते।
श्वेत वस्त्र ये धारण करते,
फोरब्हीलर में घूमा करते।
इन्हें आज सभी समझते भगवान है।
ये तो हर जगह आश्वासन देते,
काम कभी इनके पूरे होते,
मुर्गा,मछली का भोग लगाते,
सुरा सुंदरी का पान करते,
ये तो बड़े ही जादूगर इंसान है।
बड़ी-बड़ी पार्टियाँ का साथ है,
जनता को देते धोखा,
लेते-लेते बडे-बड़े खोखा।
ये बडे बेईमान ,मक्कार इंसान हंै।
उन्हें प्रणाम करो,ये बड़े महान हैं।।
 
’यदि बापू जी
जिदा होते’
यदि बापू जी ंिजंदा होते,
सौ-सौ आँसू वो भी रोते।
नारियाँ की लाज लुट रही,
मंँहगाई भी खूब बढ़ रही।
भ्रष्टाचार को,
अपनी आँखों से देखते।
यदि गांधी जी जिंदा होते।
अराजकता का बोलबाला है,
गुंड़ागर्दी का ही-हल्ला है।
हरिजनों पर अत्याचार देखते,
यदि गांधी जी जिंदा होते।
नेताओं के खूब घोटाले हैं,
नक्सलियों के मँुंह वाले हैं,
देश की आज तौहीन देखते,
यदि गांधी जी जिंदा होते।
सौ-सौ आँसू वो भी रोते। 
-भारतविजय बगेरिया, टीकमगढ़ (म.प्र.)
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आकांक्षा’ पत्रिका
 इंटरनेट पर ब्लाग
-www.akankshatkg.blogspot.com   
टीकमगढ़ जिले से प्रकाशित एकमात्र साहित्यिक वार्षिक पत्रिका ‘आकांक्षा’ के संग्रहणीय एवं शोध कार्य हेतु बहुउपयोगी अंक ‘एक’(2006), अंक-‘दो’(2007), अंक-‘तीन’(2008), अंक-‘चार’ (2009) अंक-‘पाँच’(2010),अंक-छः(बुंदेली विशेषांक) (2011) अंक सात (राज भाषा ‘हिन्दी’ विशेषांक)(2012) एवं अंक-8 (2013)एक साथ मात्र 550रु.का एम.ओ.भेजकर प्राप्त करें।
        प्रकाशक- म.प्र.लेखक संघ,टीकमगढ़
प्राप्ति स्थान-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’(अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ)
       नई चर्च के पास शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)पिन 472001

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51
 

ग़ज़ल-तुम्हारे सिवा किसी का सहारा नहीं मिला,
सबको तलशा लेकिन,सिजारा नहीं मिला।
सपने में देखा सोना,भण्डार किले का,
सरकार ने भी खोदा,पिटारा नहीं मिला।
इक बार मिला था वो मंजिल का हम सफ़र
ढूँढ़ा बहुत उसको पर दुबारा नहीं मिला।
तुमको जो चाहा इतना दिल दे दिया तुम्हें,
फिर और से कभी दिल हमारा नहीं मिला।
किया जितना प्यार मैंने बस तुझसे सनम,
लेकिन एतबार मुझे तुम्हारा नहीं मिला।
मंदिर खोजा मस्जिद,गुरुद्वारे,गिरजाघर,
आँखों का नूर अपना सितारा नहीं मिला।
‘पूरन’ है मिला सब कुछ इस जीवन में मुझे,
वह देखने को तेरा नजारा नहीं मिला।। 
- पूरन चन्द्र गुप्ता ‘पूरन’,टीकमगढ़़ (म.प्र.)
 

ग़ज़ल-
अंगूर की बेटी को धोके से जो छू ली है।
मद होश हुआ मैं तो लगता है के पीली है।।
नज़रों से पिलाते तो कुछ और मज़ा आता।
पाकीज़ा है दोशीज़ा शरमीली है भोली है।।
गर हुश्ने मुजस्सिम का दीदार भी हो जाता।
लेती भी है अँंगड़ाई मस्ती में जो झूली है।।
वैसे तो खिला करती गुलशन में हज़ारों ही।
नाजुक है कली फिर भी पर्दे में जो खिली है
है इन्तज़ार उसको महबूब की आमद का।
बेताब है खिलने को उर्रियाँ भी वो होली है।।
चाहत हे मेरे दिल की सीने से लगा लूंँ मैं।
कैसे मिलू में उस्से न ही ईद न होली है।।
किस बात पे रूठे है न जाने ‘ज़फ़र’ तुमसे।
जब खूब मनाया है तब जाके ही बोली है।।
/ हाजी ज़फ़रउल्ला खां ‘ज़फ़र’,टीकमगढ़़(म.प्र.)
52
 

ग्ऱज़ल-निखर गयेफूलों की तरह आज वो ऐसे निखर गए,
खुश्बू चमन में आ गई मुड़कर जिधर गए।
ऐसा लगता है उन्हें आज ही देखा हमने,
देखे हुए किसी को बहुत दिन गुज़र गए।
सावन की घटाएँ भी शरमा गई हुजूर,,
जुल्फ़े जिधर को मुड गई बादल उधर गए।
लो आईना हैरान है ना जाने किस तरह,
अंदाज़ भूल भाल के गेसू सँवर गए।
वो पहली मुलाक़ात की यादें ही रह गईं
याद आते-आते सारे शीराजे़ बिखर गए।
वादा किया था आएँंगे इक रोज़ वो ‘अनवर’
ऐसी भी क्या खता कि वह खुद ही मुकर गए।
ग्ऱज़ल-‘पिघलते देखा’े’
चाँद तारों को जमीं पर यूँ चमकते देखा,
जैसे फूलों को बहारों में महकते देखा।
उनसे इज़हारे वफ़ा हम कैसे करें,
रुख हवाओं का पल-पल में बदलते देखा।
मैंने तूफ़ानं में नैया तो छोड़ दी अपनी,
जब से महबूब को साहिल पै उतरते देखा।
दौलत-ए- हुश्न पै इतराते क्यों हो,
चाँद तारों को भी ढलते देखा।
आँसुओं के असर निराले हैं,
हमने पत्थर को पिघलते देखा।
वारे इसयां से भरा है मेरा दामन ‘अनवर’
फिर भी अल्लाह की रहमत को बरसते देखा।।
-हाजी अनवर,   टीकमगढ़,(म.प्र.)
53
 

बुन्देली बगिया-
धरती की शोभा अनन्त है-
फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन
सबके मन को भाते हैं,
भौरे,,तितली और पतंगे,
ललचाने से आते हैं,
फागुन की मद मस्त हवाएँ
उन्मादित सी करती हैं।
रोम-रोम पुलकित है सबका
कलियाँ चटक बिहँसती हैं।
तरुणाई से लकदक धरती
फूलों का श्रंगार किए,
सुमनों की यौवन मदिरा को
छक छक भौंरा खूब पिए।
इन्द्र धनुष सा दिग्दिगन्त है।
वसुधा की शोभा अनंत है
कामदेव से पीडि़त सारे
पीड़ा का न कहीं अंत है।
जल में नभ में डाल पात में,
छलक परौ सबरौ बसंत है।
    मँहगाई-

मँंहगाई के डंक सै भइया,घर घर रोवे भइया
भटा गकरिया बात दूर की नौनऊ बनौ तरइया,
भर क्वाँर में बैला भर गओ,कैसे बोंय हरइया
चार साल सें छपा न पाई,गिरबौ चहत मडैया।
मौड़ा-मौड़ा भूखन मर रय,प्रान निकर रय दइया।
कोऊ काऊ कौ नइयां-
कैसो आव जमानो भइया कोऊ काऊ कौ नइयाँं
इक दूजे के गरे काट,झूटे बनत गुसैंयाँ,
बड़े-बड़े परिवार रहत ते,इक बरगद की छैंयाँं
अब तो घर में छै-छै चूले तोऊ चलैं पनइयाँं
अपनी-अपनी सबै परी है,टूटें रोज डरइयाँं।।

होरी-
आ गओ होरी कौ त्योहार,
छा गऔ मस्ती कौ त्योहार,
पीपर,पाकर, नीम, बमूरा,
सब मिल करैं धमार,
ढोल बजै,हरमुनिया बाजें
करतालों की आई बहार,
टेसू ने पिचकारी मारी,
बरस गये अंगार।
बंशी बारे ऐसे पकरे,
गोबर पोत गयी इक नार।।
/ डाॅ.अवधेश चन्सौलिया,ग्वालियऱ (म.प्र.)
54
 

ग़ज़ल खण्ड
पैमाना तलाश करता है-

गफ़लतों के साये में वो बहाना तलाश करता है,
वह सुर के नए अंदाज़ में तराना तलाश करता है।
लाख  जतन के बावजूद भी निकला न जब कोई हल,
आखि़र वो तरीका वही पुराना तलाश करता है।
जीवन की दुर्गम राहों को पार वही कर पाएगा,
लगन का सच्चा मंजि़ल का ठिकाना तलाश करता है।
निर्दयी ज़माने ने उसको घर से ही निकाला है,
वो भटकता फिर रहा,आशियाना तलाश करता है।
आत्म विश्वास के दम पर सारा जमाना चलता है,
है वीर जो समुन्दर में खजाना तलाश करता है।
अश्कों की बारिश को दिल में कब तक छिपाएं रक्खेगा?
ग़म का मारा दर्द का पैमाना तलाश करता है।
ग़मों की उलझनों को तू और कब तक सुलझाएगा?
‘रिज़वान’ तेरे साये को ज़माना तलाश करता है।।

यूँ भीड़ से हटकर खड़ा मैं अजनबी,अनजान था,
कि तन्हाई थी साथ में ग़म मेरा मेहमान था।
वो तो अच्छा था कि मेरी आँखों में भी अश्क थे,
वरना नज़रें फिरी जिधर भी वहीं रेगिस्तान था।
मैं चिराग़ बनकर करता हँू मोहब्बत बयार से,
फिर भी कैसी आँधी उमड़ी,गजब का तूफ़ान था।
दिल तो बन गया था अब ‘कन्फ्यूजन’ की कठिन किताब,
अनसोल्वड पेपर की तरह जिसका न समाधान था।
वो मेरी आँख से उतरा,मेरे दिल में क्यों न उतर सका,
ये जमीं भी खामोश थी,और चुप आसमान था।
तुम गिराने में लगे थे जाने क्यों मैं रुक गया
पाँव भी संभले अचानक किसका ये एहसान था।
आँख से जो पानी टपका,वो जाम समझ पी गया,
देखकर ‘रिज़वान’ ये मंज़र,खुदा हैरान था।। 
-रिज़वान खान, टीकमगढ़ (म.प्र.)
55
ग़ज़ल-संदल लिख गया
कोई मेरी जि़न्दगी पे ग़ज़ल लिख गया,
सारे लम्हें,सारी यादें,सारे पल लिख गया।

कभी सुकूँ से जि़न्दगी जो ना पाए हम,
लिखने वाला नसीब में हलचल लिख गया।

मेरे यकीन का क़त्ल मेरे सामने करके,
खं़ज़र पे मेरा ही नाम वो क़ातिल लिख गया।

मेरे दिल तूने भी क्या तासीर पाई है,
ग़ैरों की किस्मत में भी संदल लिख गया।

दर्द मिलता नहीं उनकी नज़्मों में देखिए,
शायर बन गया जो चंद ग़ज़लें आजकल लिख गया।।

ग़ज़ल-रौनक भर देते हो तुममेरे सूने जीवन में हलचल भर देते हो तुम,
जैसे हर अंधियारे को जगमग कर देते हो तुम।

शीशम के साये से देखो चंदा झाँक रहा,
उसकी झिलमिल किरणों में रौनक भर देते हो तुम।

सुबह में केसर शामों में चंदन की खूश्बू,
और रातों में जैसे गुलमोहर भर देते हो तुम।

तन्हाई के लम्हे जब तपने लगते हैं,
उन लम्हों में आकर ठंडक भर देते हो तुम।

चैमासे की हरियाली और सावन का संगीत,
जैठ की रातों को पूस सा ठंडा कर देत हो तुम।।
- डाॅ. मीनाक्षी पटेरिया,छतरपुर (म.प्र.)
56
 

जी अब उनको जी में नईयाँ,उनसें कौनऊँ प्रश्न ने पूछो,जी अब उनकांे जी में नईयाँ,
राजमार्ग के भौत पथिक हेै अपनी गली,गली में नईयाँ।
जमीं बर गईं,बरौ आसमां,जंगल धू-धू बर उठौ,
कौन पुछैया,नाजुक दिल कौ,दिल की लगी,लगी में नईयाँ।
अपने जैसन की गिनती का है,जब इन्द्रासन सोई डोल गओ,
गिनती का देविन्द्रर की सोई,होत कभऊ,दुःखी मैं नईयाँ।
आकैं जो इक दारें तुमने अंँसुआ मोरे पौछ दए,
ग़म्म के ऊ बेरा सी लज़्ज़्ात,देखी कभऊ खुसी में नईयाँ।
हाँ जैसी, लगत है ना- ना, जब के कत हैं,वो मुस्काके,
होत अजब,पहेली जैसी,उनकी नईयाँ,नहीं में नईयाँ।।
मुकेश चतुर्वेदी‘समीर’,सागऱ,(म.प्र.)

प्रार्थना-
हे! भक्त वछल भगवान तुझको बारम्बार प्रणाम।
सब विधि मंगल कीजिए है विनय यही अविराम।।
सांसों की गिनती नहीं,बीती उमर तमाम।
कृपा कीजिए रावरी,विनय यही अभिराम।।
मात्भूमि के प्रति उद्बेाधन-
सौ नौंने से नौनी मेरी मात्भूमि है नौनी।
गाथा इसकी कैसे गाऊँ काँ सेर काँ पौनी।।
मात्भूमि के ऋण से उऋण कभऊ न हौनी।
शीश झुकाता हूँ मैं इसको जा है स्वर्ग नसेनी।।


मात्भूमि,जन्मभूमि,भारत भूमि,बिहगो की है आश्रयदाता।
जो विश्वभरण पोषण करती है पालक है सुखदाता।।
गाओ,अन्नांे से पूरण ऐश्वर्यमयी ममतामयी है माता।
जिसकी गुणगाथा,जन गण मन राष्ट्रगीतों में गाता ।।

गा-गाकर गुण गरिमा इसकी हम जन-मन रंजन करते ।
साझ सकारे चंदा-सूरज इसकी आरती उतारते।।
सुरसरि सी पावन चरण धूल हम मस्तिष्क पर धरते।
अबध बिहारी जैसे कल-कवियों के प्राण इसी में बसते ।। 
- अबध बिहारी श्रीवास्तव ‘दाऊ’,टीकमगढ़,(म.प्र.)
57
‘‘आज कै लरका’’

लरका मताई से कट रय,
बाप मताई नई सट रय।
मताई बाप हैंसा में बट रय।
एक नईया दूसरे से कै रव,
बाप लेत के मताई लै रव,
जीने पालौ उयै उखट रय।
एक मईना के खूबारय,
हमई खा दच्चै दुबारय,
दुःख में दिन कट रय।
काये हमें काये दय,
हैंसा तो सब लय।
हम खर्चा में चटरय।
बाप मताई रो रय।
लरका सुख संे सो रय।
भार के कारेजै फट रय,
बाप मताई को भार हो गव,
जो जामनौ बेकार हो गव।
पेट की रोटी खा नट रय।
जो बाप मताई खौ न लैखै,
उपर भगवान तौ देखै,
भाऊ बे नई सूके निपट रय।।
 
‘‘काऊ की’
काऊ की एक फोरबै की सोचो तो
ऊकी दोई फूटत।
चुटईया तो भगवान पकरंे
उतै नइ छूटत
सौ दिना चोर के एक दिना साव कौ
तुम भली सोचे,अपने दाव को,
बिद जात सो गोडे कूटत
बुरय काम भगवान खौं दोष धरें,
मन चाऊत के हरो-हरो चरें,
तुमाय कर्म तुमई सूटत।
अबै कुकरम में फूलै,
भगवान देखे नइ भूलै,
मन ये सब कछु लूटत,
आग खैवे तो अँगरा करौ,
चूलै में हाथ देव तो तुम बरौ,
एक दिना पाप कौ घड़ा फूटत।
एक दिना ऐसौ दन्द होत,
पूरी देह बंद होत।
भाऊ कोऊ न गोडे सूतत।।
 गुलाब सिंह यादव ‘भाऊ’
 ग्राम लखौरा, टीकमगढ़ (म.प्र.)

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श्याम मेडिकल स्टोर
पारस हाॅटल के सामने,सिविल लाइन, टीकमगढ़ (म.प्र.)

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58
गतांक से आगे...........(नौवा भाग).
     साहित्यिक संस्था ‘म.प्र.लेखक संघ’
 जिला इकाई टीकमगढ़ की वार्षिक रपट (2013)

   
टीकमगढ़ नगर की सर्वाधिक सक्रिय साहित्यिक संस्था म.प्र.लेखक संघ ने सन् 2013-2014 में भी अग्रलिखित गोष्ठियाँ सफलतापूर्वक आयोजित करते हुए गोष्ठियों का यह क्रम अनवरत् जारी रखा है। वार्षिक पत्रिका ‘आकांक्षा’ का नौवा अंक आपके हाथों में है। इस बार हमारी गोष्ठियों में दतिया, बल्देवगढ़,,पृथ्वीपुर,बानपुर (उ.प्र.) तथा बाँदा (उ.प्र.) आदि स्थानों से कवि शामिल हुये तथा हमारी गोष्ठी की शोभा बढ़ायी।
        170वीं गोष्ठी जिला पुस्तकालय में दिनांक 11.3.13 को ‘होली मिलन समारोह’ एवं ‘हास्य व्यंग्य’ के रूप में आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता व्यंग्यकार अजीत श्रीवास्तव ने एवं मुख्य अतिथि अवध विहारी श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि के रूप में हाजी ज़फ़़रउल्ला खां ‘ज़फर’ रहे। संचालन राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया तथा आभार प्रदर्शन परमेश्वरीदास तिवारी ने किया। इसमें 25 कवियो ने अपनी रचनाएँ पढ़ी।
171वीं गोष्ठी जिला पुस्तकालय में दिनांक 28.4.13 को ‘नारी शक्ति पर केन्द्रित’ गोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता डाॅ. रुखसाना सिद्दकी ने की एवं मुख्य अतिथि कु.सीमा श्रीवास्तव रही तथा मुख्य अतिथि के रूप में साबरा सिद्दीकी रही। संचालन अजीत श्रीवास्तव ने किया तथा सभी का आभार रामगोपाल रैकवार ने माना। इस गोष्ठी में 31 कवियो ने अपनी रचनाएँ पढ़ी।
    172वीं गोष्ठी जिला पुस्तकालय में दिनांक 28.5.13 को लेखक संघ की ‘आकांक्षा पत्रिका का विमोचन समारोह’ व ‘नई कविता पर केन्द्रित’ गोष्ठी हुई जिसकी अध्यक्षता बी.एज. जैन एवं मुख्य अतिथि विजय कुमार मेहरा व विशिष्ट अतिथि डाॅ. डी.पी.खरे रहे व संचालन राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया तथा आभार अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने माना। इस अवसर पर राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा संपादित म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ की वार्षिक पत्रिका ‘आकांक्षा’ के अंक-आठ का विमोचन किया गया  इस गोष्ठी में 24 कवियो ने अपनी रचनाएँ पढ़ी।
    173वीं गोष्ठी जिला पुस्तकालय में दिनांक 30.6.13 को ‘बुन्देली गद्य व पद्य पर केन्द्रित’ आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता डाॅ. दुगेश दीक्षित ने की एवं मुख्य अतिथि पं.रामस्वरूप पाण्डेय एवं विशिष्ट अतिथि पं.हरिविष्णु अवस्थी रहे। संचालन अजीत श्रीवास्तव ने किया तथा सभी का आभार राना लिधौरी ने माना। इस गोष्ठी में 27 कवियो ने अपनी रचनाएँ पढ़ी।
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174वीं गोष्ठी जिला पुस्तकालय में दिनांक 28.7.13 को ‘प्रेमचन्द’ पर केन्द्रित गोष्ठी’ आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता पं.हरिविष्णु अवस्थी ने की व मुख्य अतिथि बाँदा (उ.प्र.) से पधारे कवि सुधीर खरे ‘कमल’। संचालन उमाशंकर मिश्र’ ने किया तथा सभी का आभार विजय कुमार मेहरा ने माना। 175वीं गोष्ठी दिनांक 25.8.13 को ‘गीत पर केन्द्रित’ आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता मनमोहन पाण्डेय ने की व मुख्य अतिथि हरेन्द्रपाल सिंह व विशिष्ट अतिथ के रूप में गीतकार वीरेन्द्र चंसौरिया रहे। संचालन राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया तथा सभी का आभार परमेश्वरीदास तिवारी ने माना।   
        176वीं गोष्ठी जिला पुस्तकालय में दिनांक 29.9.13 को ‘हिन्दी पर केन्द्रित गोष्ठी’ आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता पं.हरिविष्णु अवस्थीे ने की व मुख्य अतिथि दतिया से पधारे डाॅ. राजेन्द्र सिंह खेगर एवं विशिष्ट अतिथि अवध बिहारी श्रीवास्तव रहे। संचालन अजीत श्रीवास्तव ने किया तथा सभी का आभार रामगेापाल रैकवार ने माना। इस गोष्ठी में 32 कवियों ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। दिनांक 27.10.13 को म.प्र.लेखक संघ की 177वीं. गोष्ठी ‘पाठक मंच’ के साथ संयुक्त रूप से कहानी व लघुकथा’ पर केन्द्रित आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता पं.हरिविष्णु अवस्थी ने की व मुख्य अतिथि के रूप में पृथ्वीपुर से पधारे एम.डी. मिश्रा ‘आनंद’ व विशिष्ट अतिथि के रूप में पूरनचन्द्र गुप्ता रहे। संचालन रामगोपाल रैकवार ने किया।
         जिला पुस्तकालय में दिनांक 30.11.13 को म.प्र.लेखक संघ की 178वीं. गोष्ठी ‘बाल साहित्य’ पर केन्द्रित आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता डाॅ. कैलाश विहारी द्विवेदी ने की व मुख्य अतिथि के रूप में अजीत श्रीवास्तव व विशिष्ट अतिथि के रूप में व्ही.व्ही बगेरिया रहे। इस अवसर पर बगेरिया जी की ‘बाल वाटिक’ कविता संग्रह की सीडी का विमोचन भी किया गया। संचालन राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया,जबकि आभार प्रदर्शन विजय कुमा मेहरा’ ने किया।
         दिनांक 29.12.13 को जिला पुस्तकालय मे म.प्र.लेखक संघ की 169वीं. गोष्ठी ‘दोहा,कुण्डलिया व छन्द’’ पर केन्द्रित आयोजित की गयी। जिसकी अध्यक्षता वीरेन्द्र बहादुर खरे ने की व मुख्य अतिथि के रूप में बल्देवगढ़ से पधारे कोमल चन्द बजाज रहे व विशिष्ट अतिथि के रूप में कवयित्री गीतिका वेदिका रहे। संचालन उमाशंकर मिश्र‘तन्हा’ ने किया जबकि आभार प्रदर्शन राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया।
60
दिनांक 29 जनवरी सन् 2014 को म.प्र. लेखक संघ की टीकमगढ़ जिला इकाई द्वारा श्री परमेश्वरी दास तिवारी के निवास पर देश प्रेम पर केन्द्रित 180वीं गोष्ठी व  सम्मान समारोह’ पर अतिथियों के कर कमलों से श्री मनमोहन पाण्ड़े को ‘गीत शिरोमणि सम्मान’ व श्री वीरेन्द्र चंसंौरिया को ‘कंठ-कोकिल सम्मान’ से लिए सम्मानित किया गया। अध्यक्षता पं.हरिविष्णु अवस्थी ने की व मुख्य अतिथि के रूप में डाॅ. जगदीश प्रसाद रावत रहे व विशिष्ट अतिथि के रूप में हाजी ज़फ़रउल्ला खा ंज़फ़र’ रहे। संचालन सचिव रामगोपाल रैकवार ने किया जबकि आभार प्रदर्शन अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया।
    दिनांक 23 फरवरी-2014 को म.प्र. लेखक संघ की टीकमगढ़ जिला इकाई द्वारा श्री शांतिकुमार जैन के निवास पर ग़ज़ल पर केन्द्रित 181वीं गोष्ठी व  सम्मान समारोह’ पर अतिथियों के कर कमलों से श्री दीनदयाल तिवारी़े एवं कवियत्री सु.श्री सीमा श्रीवास्तव द्वव को ‘बुन्देली गौरव सम्मान-2014’ से लिए सम्मानित किया गया। अध्यक्षता हाजी जफ़रउल्ला खां ‘ज़फ़र’ ने की व मुख्य अतिथि के रूप में मान.श्री अनुपम श्रीवास्तव ‘निरुपम’जी (प्रधान न्यायधीश,पारिवारिक न्यायालय टीकमगढ़) रहे । संचालन सचिव रामगोपाल रैकवार ने किया जबकि आभार प्रदर्शन मेजबान शांतिकुमार जैन ‘प्रियदर्शी’ ने किया।
    इस प्रकार म.प्र.लेखक संघ द्वारा अपने गठन 19 दिसम्बर सन् 1998 से दिनाँक 27.2.2014 तक 181 साहित्यिक गोष्ठियाँ सफलता पूर्वक आयोजित की जा चुकी है इसके पूर्व में ‘आँचलिक सम्मेलन’ कराकर एवं ‘अभी लंबा है सफ़र’ पुस्तक प्रकाशित कर एक मिसाल कायम की है। सन् 2006 से ‘आकांक्षा’ नाम से वार्षिक पत्रिका प्रकाशित हो रही है। जिसका नौवा अंक आपके हाथों में है।
    टीकमगढ़ की प्रसिद्ध कहानीकार स्व. डाॅ. छाया श्रीवास्तव को वर्ष 2004 में म.प्र.लेखक संघ भोपाल का प्रतिष्ठित ‘काशी बाई मेहता सम्मान’ राज्य संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा मिला तथा वर्ष 2005 में टीकमगढ़ के सुप्रसिद्व युवा कवि एवं लेखक संघ के जिला इकाई टीकमगढ़ के अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ को म.प्र.लेखक संघ भोपाल का प्रतिष्ठित ‘देवकीनंदन माहेश्वरी सम्मान’ महामहिम राज्यपाल डाॅ.बलराम जाखड़ के कर कमलों द्वारा मिला। वर्ष 20011 में टीकमगढ़ के सुप्रसिद्व बुन्देली केे साहित्यकार डाॅ. कैलाश बिहारी द्विवेदी’ को म.प्र.लेखक संघ भोपाल का प्रतिष्ठित‘कस्तूरी देवी चतुर्वेदी सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। सन् 2006 में टीकमगढ़ इकाई को राना लिधौरी के नेतृत्व में प्रदेश की 45 इकाईयों में से प्रथम उत्कृष्ट इकाई सम्मान भी मिला है। हाल ही में दिनांक 29.12.2013 को लेखक संघ के कोषाध्यक्ष भारत विजय बगेरिया को भोपाल में बाल साहित्य पर ‘देवकीनंदन माहेश्वरी सम्मान-2013 से सम्मानित किया गया है।
    म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ ने जिले के करीब 27 कवि-शायरों को प्रदेश की राजधानी भोपाल में सफलतापूर्वक मंच प्रदान करते हुए प्रादेशिक स्तर पर काव्यपाठ कराया है। राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ टी.व्ही.चैनल ई.टी.व्ही. म.प्र. में दो बार काव्यपाठ कर चुके हैं।
 / रामगोपाल रैकवार‘कँवल’ सचिव लेखक संघ,
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साभार पत्रिकाएँ प्राप्ति स्वीकार:-
1-हिन्दी प्रचारक सभा (मा.पत्रिका) संपादक-विजय प्रकाश वेरी,वाराणसी,उ.प्र.)
2-राष्ट्रभाषा (त्रैमा.पत्रिका) संपादक-प्रो.अनन्तराम त्रिपाठी,वर्धा, (महाराष्ट्र)
3-दृष्टिकोण (त्रैमा..पत्रिका) संपादक-नरेन्द्र कुमार चक्रवर्ती,कोटा,(राजस्थान)
4-‘मकरंद’ (त्रैमा.पत्रिका) संपादक-रामसहाय शर्मा,,नोएडा,(उ.प्र.)
5-‘अविराम साहित्यिकी’ (त्रैमा.पत्रि) संपादक-डाॅ.उमेश महादेशी,रूड़की,(उ.ख)
6-‘जर्जर कश्ती ’(मा.पत्रिका) संपादक-ज्ञानेन्द्र साज़,अलीगढ़,(उ.प्र.)
7-अभिनव प्रयास (त्रैमा.पत्रिका) संपादक-अशोक अंजुम,अलीगढ़,(उ.प्र.)
8-‘स्कूल शिक्षा’ (मा.पत्रि) संपादक-सुरेन्द्रनाथ दुवे,भोपाल(म.प्र)
9-‘दिवान मेरा’ (त्रैमा.प.),संपा-नरेन्द्र सिंह परिहार,नागपुर (महाराष्ट्र)
10-मित्र संगम (मा.पत्रिका)(अंक फरवरी 11) संपादक-पे्रम बोहरा,दिल्ली
11-‘सांझी एक्सप्रैस’(मा.पत्रि.) संपादक-सुरेश जांगिड़ उदय,कैथल(हरियाणा)
12-‘नामदेव क्षत्रिय संकल्प’ (त्रैम.पत्रि) संपादक-श्रीमती गीता नामदेव,जबलपुर,
13-‘साहित्य गुंजन (त्रैमा.पत्रि) संपादक-जितेन्द्र चैहान,इंदौर,(म.प्र.),
14-‘संगम’ (मा.पत्रि) संपादक-हरविन्द्र कमल,पटियाला,(पंजाब)
15-‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ (त्रैमा.पत्रि)संपादक-मोह.मुइनुददीन अतहर’,जबलपुर
16-‘व्यंग्य यात्रा ’(त्रै.पत्रि) संपादक-प्रेम जनमेजय, नई दिल्ली
17-‘मरु गुलशन ’(त्रै.पत्रि) संपादक-अनिल अनवर,जोधपुर (राजस्थान)
18-‘पुष्पक ’(त्रे.म.पत्रि) संपादक-डाॅ. अहिल्या मिश्र,हैदराबाद (आंध्रप्रदेश)
19-‘ग़ज़ल के बहाने’ (त्रै.पत्रि) अंक-4 संपादक-डाॅ.दरवेश भारती,रोहतक(हरि.)
20-‘सरस्वती सुमन’(त्रैसा..पत्रि) संपादक-डाॅ.आनंद सुमन सिंह,देहरादून,(उ.ख.)
21-‘अथाई की बाते’ (त्रै.म.पत्रि) संपादक-सुरेन्द्र शर्मा शिरीष’,छतरपुर,(म.प्र).
22-‘शब्द प्रवाह’ (त्रै.पत्रि) अंक-4 संपादक-संदीप फाफरिया‘सृजन’,उज्जैन,म.प्र.
23-‘अनन्तिम’ (त्रै.पत्रि) अंक-3 संपादक-सतीश गुप्ता,कानपुर,(उ.प्र.)
24-‘समय के साखी’ (मा.पत्रि) संपादक-डाॅ.आरती,भोपाल,(म.प्र).
25-‘नारी दर्पण’ (त्रै.पत्रि) संपादक-श्रीमती मिथलेश सेंगर,गुना,(म.प्र)
26-‘सलुआ नई दिशा’ (त्रै.पत्रि)  सलुआ (प.बंगाल.)
27-‘पंजाब सौरभ’ (मा.पत्रि.),संपादक-विश्व कीर्ति, पटियाला (पंजाब.)
28-‘साहित्य क्रांति’ (त्रैम.पत्रि) संपादक-अनिरूद्ध सिंह सेंगर,गुना (म.प्र)
29-‘प्राची’ (मा.पत्रि) संपादक-राकेश भ्रमर,जबलपुर (म.प्र)
30-‘नामदेव क्षत्रिय संकल्प’ (त्रैम.पत्रि) संपादक-श्रीमती गीता नामदेव,जबलपुर
31-‘समृद्ध सुखी परिवार’ (मा.पत्रि) संपादक-ललित गर्ग,दिल्ली
32-‘सुलभ इंडिया’ (मा.पत्रि) संपादक-डाॅ. विन्देवर पाठक,दिल्ली
33-‘मोमदीप’ (त्रैमा.पत्रि)संपादक-डाॅ.गार्गीशरण मिश्र‘मराल’,जबलपुर(म.प्र)
34-‘साहित्य रंजन’ (मा.पत्रि)संपादक-महेश सोनी,भोपाल(म.प्र)
35-‘नई ग़ज़ल’ (त्रै.मा.पत्रिका)-सं.-डाॅ. महेन्द्र अग्रवाल,शिवपुरी,(म.प्र.)
36-‘रुचिर संस्कार’ (मा.पत्रि) संपादक-रजनीकांत कोष्टा,जबलपुर,(म.प्र.)
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37-‘प्रेरणा’ (त्रै.पत्रि) संपादक-अरूण तिवारी,भोपाल,(म.प्र)
38-‘भावुकता’ (़त्रैमा.पत्रि.),संपादक-सुधाकर श्रीवास्तव,नवलगढ़ (राज.)
39-‘कला श्री’ (त्रै.पत्रि) संपादक-डाॅ. गौरी शंकर शर्मा ‘गौरीश’,भोपाल,(म.प्र)
40-‘सुदर्शन श्याम संदेश (त्रै.पत्रि) संपादक-राधे श्याम दुवे,लखनऊ (उ.प्र)
41-‘सार्थक’ (त्रै.पत्रि) संपादक- मधुकर गौड़’,मुंबई,(महाराष्ट्र)
    साभार वार्षिक/स्मारिका पुस्तकंे प्राप्ति स्वीकार-
41-‘बुन्देली बसंत (वार्षिक स्मारिका) संपादक-डाॅ.बहादुर सिंह परमार,छतरपुऱ,(म.प्र.
42-‘बुन्देली दरसन (वार्षिक स्मारिका) संपादक-डाॅ.एम.एम.पांडे,हटा,,(म.प्र.)
43-‘बुन्देली अरचन (वार्षिक स्मारिका) प्रबंध संपादक-इ.अमर सिंह राजपूत,दमोह,,
44-‘पत्रकारिता कोश’ (वार्षिक),-आफताब आलत,मुंबई (महाराष्ट्र)
45-‘दीपमाला’ (वा.पत्रिका)-सं.-संतोष परिहार,बुरहानपुर(म.प्र.)
46-‘परिधि’ (वा.पत्रिका)-सं.-डाॅ. अनिल जैन,सागर,(म.प्र.)
        साभार पुस्तकंे प्राप्ति स्वीकार:- 
47-‘लाश’ (कविता संग्रह),कवि-डाॅ. हनुमंत रणखांव,बीड़़ (महााराष्ट्र)
48-‘जी भर के जीना’ (कविता संग्रह),कवि-देवेन्द्र कुमार मिश्रा,छिन्दवाड़ा़़ (म.प्र)
49-‘राजनीति का डी एन ए’ (कहानी संग्रह),कवि-देवेन्द्र कुमार मिश्रा,छिन्दवाड़ा़़
50-‘अन्ना का सुख-अन्ना का दुःख’ (व्ंयग्ंय संग्रह),-अरूण कुमार जैन, इंदौर ़(म.प्र)
51-‘व्यंग्य की टंकार’ (व्यंग्य संग्रह),कवि-सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधांशु,मैनुपरी (उ.प्र)
52-‘तन्हा सफ़र’’ (ग़ज़ल संग्रह),ग़ज़लकार-डाॅ. क्ेलाश गुरू स्वामी,,सिहोर (म.प्र)
53-‘शब्दों के रंग’ (ग़ज़ल संग्रह),ग़ज़लकार-सुधीर खरे ‘कमल,,बाँदा (उ.प्र)
54-‘कैद़ में उड़ान’ (ग़ज़्ल संग्रह),ग़ज़लकार-अक्षय गोजा,जोधपुर,(राजस्थान)
55-‘आधी आबादी’ (आलेख संग्रह),लेखक-आर.एस.शर्मा,टीकमगढ़़़ (म.प्र)
56-मन द्वारा उपचार’ (आलेख संग्रह),लेखक-सीताराम गुप्ता, दिल्ली
57-‘हाइकु रत्न’ (हाइकु संग्रह),कवि-आचार्य भगवत दुवे,जबलपुऱ़ (म.प्र)
58-‘विविधा’ (काव्य संग्रह),कवि-कन्हैयालाल अग्रवाल,आगरा़़़ (उ.प्र)
59-‘कैनवास पर शब्द’ (काव्य संग्रह),कवि-संदीप राशिनकर,इंदौऱ,़(म.प्र)
60-‘राम जू बुन्देखंढ या बुन्देलखंड़ राम’(काव्य संग्रह),कवि-रामेश्वर प्रसाद गुप्त,झाँसीा
61-‘उजालों का सफ़र’ (काव्य संग्रह),कवि-वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,मुरादाबाद(उ.प्र)
62-‘विटिया सोन चिरैया सी’ (काव्य संग्रह),कवि-वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,मुरादाबाद
63-‘जीवन की गूँज’ (काव्य संग्रह),कवि-गोपाल कृष्ण भट्ट आकुल,जयपुर(राज.)
64-‘चेहरे के पीछे’ (कविता संग्रह),कवि-स्वप्निल शर्मा,मनावर,धाऱ़ (म.प्र)
65-‘तुम कहाँ हो अन्तर्मन’ (कविता संग्रह),कवि-नवीन खंडेवाल निर्मल,इंदौऱ(म.प्र)
66-‘कुण्डलियाँ कौमुदी’ (कुण्डली संग्रह),कवि-डाॅ. नलिन कोटा ़(राजस्थान)
67-‘बे अदब साँसे’ (त्रिवेणी संग्रह),कवि-राहुल वर्मा, इंदौर (म.प्र)
68-‘रूबाइयाँ ए एकता’ (रूबाई संग्रह),कवि-चतुर्भज दास चमन,मधोपुरा (बिहार)
69-‘समय के पंख’ (कविता संग्रह),-शिवकुमार दुवे,इंदौर ़(म.प्र)
70-‘मेरे गाँव की धूप’ (काव्य संग्रह),कवि-अरविन्द्र अवस्थी,मीरजाुपर (उ.प्र)

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‘आकांक्षा’ पत्रिका 2015 हेतु रचनाएँ व सहयोग आमंत्रित
‘आकांक्षा’ पत्रिका के प्रमुख नियम (शर्ते)-
1-बिना सहयोग राशि के हम रचनाएँ प्रकाशित करने में पूर्णतः असमर्थ रहेंगे।
2-सदस्यता शुल्क मात्र सौ (100) रूपए है। दो रचनाएँ प्रकाशित की जाएगी)          (एक रचना अधिकतम् 14 पंक्ति की ही प्रकाशित की जाएँगी, उससे अधिक        बड़ी होने पर उसे दो रचनाएँ माना जाएँगा )
3-विशेष सहयोगी शुल्क 500रु.(फोटो सहित उल्लेख होगा)
4-क्षेत्रीय प्रतिनिधि शुल्क 300रु.या 6 सदस्य बनाने पर फ्री।
5-विज्ञापन शुल्क- पूरा पेज अन्दर 5000रु.,अंतिम पूरा पेज 10000रु.
            आधा पेज 1000रु.,बाॅक्स 200रु.
6-कृपया अपना शुल्क नगद या मनीआर्डर से ही भेजें।
साहित्यः- हिन्दी एवं ‘बुन्देली’ में स्वरचित छोटी कविता,ग़ज़ल,गीत,क्षणिका दोहे, लघुकथा,लघु व्यंग्य,लघु लेख,विचार,प्रेरक प्रसंग आदि आमंत्रित हैं।
बिशेष-‘आकांक्षा’ पत्रिका इंटरनेट पर ब्लाग में भी उपलब्ध रहेगी।
शुल्क एवं रचनाएँ भेजने की अंतिम तारीख 30 जनवरी 2015 है।    
पत्र-मनीआर्डर एवं रचनाएँ निम्न पते पर भेजंे-
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’,(संपादक -‘आकांक्षा’ पत्रिका,)
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.) पिन-472001
स्व.पन्ना लाल जी नामदेव स्मृति सम्मान हेतु प्रविष्ठियाँ आमंत्रित
टीकमगढ़ नगर की सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था ‘म.प्र.लेखक संघ’ की जिला इकाई टीकमगढ़ के तत्वाधान में साहित्यकार राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के पूज्य दादाश्री स्व.पन्नालाल जी नामदेव स्मृति सम्मान-2014 हेतु सन् 2010 से 2014 तक प्रकाशित ‘काव्य संग्रह’ की एक प्रति,जीवन परिचय,एक रंगीन फोटो, एक पता लिखा टिकिट लगा लिफाफा एवं प्रविष्टि शुल्क 200रू. सादर आमंत्रित है। प्रथम स्थान पर आने वाले कृतिकार को 1100रु.नगद शाल श्रीफल एवं आकर्षक सम्मान पत्र से सम्मानित किया जायेगा तथा उनके सम्मान में एक ‘काव्य गोष्ठी’ भी आयोजित की जायेगी। द्वितीय व तृतीय स्थान पर आने वाले को भी आकर्षक सम्मान पत्र प्रदान किया जायेगा। पुरस्कार टीकमगढ़ में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम मंें प्रदान किये जावेगे। प्रविष्ट भेजने की अंंितम तारीख दिनांक 31 जनवरी 2015
प्रविष्टियाँ निम्नलिखित पते पर भेजे।
             - राजीव नामदेव‘‘राना लिधौरी’’
    संयोजक-स्व.पन्नालाल जी नामदेव स्मृति सम्मान-2014              

          संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
    अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
         टीकमगढ़(म.प्र.) पिन-472001 मोबाइल-9893520965 -
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