''चाँदनी का कहर
अरे चाँद तू जरा बदली की ओट छिप जा।
नभ में श्याम घटाएँं छा गर्इ हंैं।
तारे भी टिमटिमा नहीं रहे हैं।
बदली भी नहीं बरस रही है।
ओस की नमी जमीन भिगो रही है।
मोतियों की मालाएँ नभ में झिलमिला रही हंैं
नदी नाले झरने उफान भर रहे हैं।
सघन वन और ये अँधेरों का धुंँधलका है।
रिसती धुंध में हलका सा धुए का कुहारसा है।
आस बढ़ी बस्ती के गलियारों से
जहाँ बाट जोहती प्रेयसी की नज़र भा गर्इ।
ये चाँदनी तेरा मयंक मंजर सा लगता है
राहगीर भूला भटका असहाय सा दिखता है
यादों की तन्हार्इ में रूंहासी आ गर्इ है।
चाँद तेरी चाँदनी ज्यादा ही शर्मा रही है।।
''पद
क्या प्रयास रहा जीवन में बार-बार ढूढ़ो मन में
उत्साह भरो और जाग्रत होवो उन्माद भरे इस जीवन में।
छिछोरेपन से दूर रहो अमरत्व भरो नयन में,
परोपकार की लौ कभी नहीं बुझती जग में,
कृतज्ञ भए जग मानस को शांत भकित में
खोज और प्रयास तुम्हारा चमके नील गगन में।।
शांति कुमार जैन 'प्रियदर्शी टीकमगढ़,(म.प्र.)
अरे चाँद तू जरा बदली की ओट छिप जा।
नभ में श्याम घटाएँं छा गर्इ हंैं।
तारे भी टिमटिमा नहीं रहे हैं।
बदली भी नहीं बरस रही है।
ओस की नमी जमीन भिगो रही है।
मोतियों की मालाएँ नभ में झिलमिला रही हंैं
नदी नाले झरने उफान भर रहे हैं।
सघन वन और ये अँधेरों का धुंँधलका है।
रिसती धुंध में हलका सा धुए का कुहारसा है।
आस बढ़ी बस्ती के गलियारों से
जहाँ बाट जोहती प्रेयसी की नज़र भा गर्इ।
ये चाँदनी तेरा मयंक मंजर सा लगता है
राहगीर भूला भटका असहाय सा दिखता है
यादों की तन्हार्इ में रूंहासी आ गर्इ है।
चाँद तेरी चाँदनी ज्यादा ही शर्मा रही है।।
''पद
क्या प्रयास रहा जीवन में बार-बार ढूढ़ो मन में
उत्साह भरो और जाग्रत होवो उन्माद भरे इस जीवन में।
छिछोरेपन से दूर रहो अमरत्व भरो नयन में,
परोपकार की लौ कभी नहीं बुझती जग में,
कृतज्ञ भए जग मानस को शांत भकित में
खोज और प्रयास तुम्हारा चमके नील गगन में।।
शांति कुमार जैन 'प्रियदर्शी टीकमगढ़,(म.प्र.)
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